Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
४७
व्यपगतपञ्चवर्णरसो व्यपगतद्विगन्धाष्टस्पर्शश्च
अगुरुलघुको अमूर्तो वर्तनलक्षणश्च काल इति ।।२४।।

अन्वयार्थ[कालः इति] काळ (निश्चयकाळ) [व्यपगतपञ्चवर्णरसः] पांच वर्ण ने पांच रस रहित, [व्यपगतद्विगन्धाष्टस्पर्शः च] बे गंध ने आठ स्पर्श रहित, [अगुरुलघुकः] अगुरुलघु, [अमूर्तः] अमूर्त [] अने [वर्तनलक्षणः] वर्तना- लक्षणवाळो छे.

*भावार्थअहीं निश्चयकाळनुं स्वरूप कह्युं छे.

लोकाकाशना एकेक प्रदेशे एकेक काळाणु (काळद्रव्य) स्थित छे. आ काळाणु (काळद्रव्य) ते निश्चयकाळ छे. अलोकाकाशमां काळाणु (काळद्रव्य) नथी.

आ काळ (निश्चयकाळ) वर्ण-गंध-रस-स्पर्श रहित छे, वर्णादि रहित होवाथी अमूर्त छे अने अमूर्त होवाथी सूक्ष्म, अतींद्रियज्ञानग्राह्य छे. वळी ते षट्गुण- हानिवृद्धिसहित अगुरुलघुत्वस्वभाववाळो छे. काळनुं लक्षण वर्तनाहेतुत्व छे; एटले के, जेम शियाळामां स्वयं अध्ययनक्रिया करता पुरुषने अग्नि सहकारी (बहिरंग निमित्त) छे अने जेम स्वयं फरवानी क्रिया करता कुंभारना चाकने नीचेनी खीली सहकारी छे तेम निश्चयथी स्वयमेव परिणाम पामतां जीव-पुद्गलादि द्रव्योने (व्यवहारथी) काळाणुरूप निश्चयकाळ बहिरंग निमित्त छे.

प्रश्नअलोकमां काळद्रव्य नथी तो त्यां आकाशनी परिणति कई रीते थई शके?

उत्तरजेम लटकती मोटी दोरीने, मोटा वांसने के कुंभारना चाकने एक ज जग्याए स्पर्शवा छतां सर्वत्र चलन थाय छे, जेम मनोज्ञ स्पर्शनेन्द्रियविषयनो के रसनेन्द्रियविषयनो शरीरना एक ज भागमां स्पर्श थवा छतां आखा आत्मामां सुखानुभव थाय छे अने जेम सर्पदंश के व्रण (जखम) वगेरे शरीरना एक ज भागमां थवा छतां आखा आत्मामां दुःखवेदना थाय छे, तेम काळद्रव्य लोकाकाशमां ज होवा छतां आखा आकाशमां परिणति थाय छे कारण के आकाश अखंड एक द्रव्य छे.

*श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे आ २४मी गाथानी टीका लखी नथी तेथी गुजराती अनुवादमां अन्वयार्थ पछी तुरत ज भावार्थ लखवामां आव्यो छे.