Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 24.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

यस्तु सहकारिकारणं स कालः तत्परिणामान्यथानुपपत्तिगम्यमानत्वादनुक्तोऽपि निश्चय- कालोऽस्तीति निश्चीयते यस्तु निश्चयकालपर्यायरूपो व्यवहारकालः स जीवपुद्गल- परिणामेनाभिव्यज्यमानत्वात्तदायत्त एवाभिगम्यत एवेति ।।२३।।

ववगदपणवण्णरसो ववगददोगंधअट्ठफासो य
अगुरुलहुगो अमुत्तो वट्टणलक्खो य कालो त्ति ।।२४।।

गति, स्थिति अने अवगाहरूप परिणामो धर्म, अधर्म अने आकाशरूप सहकारी कारणोना सद्भावमां होय छे, तेम उत्पादव्ययध्रौव्यनी एकतारूप परिणाम सहकारी कारणना सद्भावमां होय छे.) आ जे सहकारी कारण ते काळ छे. जीव-पुद्गलना परिणामनी अन्यथा अनुपपत्ति द्वारा जणातो होवाथी, निश्चयकाळ(अस्तिकायपणे) अनुक्त होवा छतां पण(द्रव्यपणे) विद्यमान छे एम नक्की थाय छे. अने जे निश्चयकाळना पर्यायरूप व्यवहारकाळ ते, जीव-पुद्गलोना परिणामथी व्यक्त (गम्य) थतो होवाथी जरूर तदाश्रित ज (जीव अने पुद्गलना परिणामने आश्रित ज) गणवामां आवे छे. २३.

रसवर्णपंचक, स्पर्श-अष्टक, गंधयुगल विहीन छे,
छे मूर्तिहीन, अगुरुलघुक छे, काळ वर्तनलिंग छे. २४.

४६

१. जोके काळद्रव्य जीव-पुद्गलोना परिणाम उपरांत धर्मास्तिकायादिना परिणामने पण निमित्तभूत छे तोपण जीव-पुद्गलोना परिणाम स्पष्ट ख्यालमां आवता होवाथी काळद्रव्यने सिद्ध करवामां
मात्र ते बेना परिणामनी ज वात लेवामां आवी छे.

२. अन्यथा अनुपपत्ति=बीजी कोई रीते नहि बनी शकवुं ते. [जीव-पुद्गलोना उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक परिणाम एटले तेमनी समयविशिष्ट वृत्ति. ते समयविशिष्ट वृत्ति समयने उत्पन्न करनारा कोई
पदार्थ विना (
निश्चयकाळ विना) होई शके नहि. जेम आकाश विना द्रव्यो अवगाह पामी शके नहि अर्थात् तेमने विस्तार (तिर्यकपणुं) होई शके नहि तेम निश्चयकाळ विना द्रव्यो परिणाम पामी शके नहि अर्थात् तेमने प्रवाह (ऊर्ध्वपणुं) होई शके नहि. आ प्रमाणे निश्चयकाळनी हयाती विना (अर्थात् निमित्तभूत काळद्रव्यना सद्भाव विना) बीजी कोई रीते जीव-पुद्गलना परिणाम बनी शकता नथी तेथी ‘निश्चयकाळ विद्यमान छे’ एम जणाय छे नक्की थाय छे.]