Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नमः भगवत्-श्रीकु न्दकु न्दाचार्यदेवाय।
नमः श्रीसद्गुरुदेवाय।
प्रकाशकीय निवेदन
[ आ चतुर्थ आवृत्ति प्रसंगे ]

आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ शास्त्र घणा समयथी अप्राप्य होवाथी अनेक मुमुक्षुओनी तेना पुनर्मुद्रण माटे मागणी चालु हती, पण कारणवशात् तेनुं पुनः प्रकाशन शीघ्र थई शक्युं नहि. आजे तेनी आ चोथी आवृत्तिनुं प्रकाशन करतां आनंद अनुभवाय छे.

आ शास्त्रना गुजराती गद्यपद्यानुवादना रचयिता ऊंडा आदर्श आत्मार्थी पंडितरत्न श्री हिंमतलाल जेठालाल शाह (बी. एस सी.)नो उपोद्घात शब्दशः आ आवृत्तिमां लीधेल छे. अनुवादक श्री हिंमतभाई शाहना शुद्धात्माभिमुख आध्यात्मिक व्यक्तित्वनो परिचय पहेली आवृत्तिना ‘प्रकाशकीय निवेदन’, ‘उपकृतभावभीनो अहोभाव’ अने ‘अभिनंदन-पत्र’मां विशदताथी करवामां आव्यो छे, तेथी अहीं ते विषे विशेष उल्लेख कर्यो नथी.

आ आवृत्तिनुं मुद्रणसंशोधन श्री हसमुखलाल पोपटलाल वोरा (प्रमुख), ब्र० श्री चंदुभाई झोबाळिया, श्री प्रवीणभाई साराभाई शाह तथा श्री मनुभाई कामदारे करी आपेल छे, तथा मुद्रणकार्य ‘कहान मुद्रणालय’ना मालिक श्री ज्ञानचंदजी जैने सुंदर रीते करी आपेल छे. ते बदल ते सौनो आभार मानीए छीए.

आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ परमागम वीतराग सर्वज्ञ महाश्रमण (प्रवर्तमान महाधर्मतीर्थना मूळ कर्ता एवा भगवान, परम भट्टारक, महादेवाधिदेव श्री महावीरस्वामी)ना वदनारविंदमांथी नीकळेल अर्थमय छे, तेथी ते सफळ छे. चतुर्गतिभ्रमणरूप परतंत्रतानी निवृत्ति अने शुद्धात्मतत्त्वनी उपलब्धिरूप स्वतंत्रतानी प्राप्ति तेनुं फळ छे. भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे प्रवचननी (भाव तेम ज द्रव्य श्रुतनी) भक्तिथी प्रेरित थईने मार्गनी प्रभावना अर्थे प्रवचनना (दिव्यध्वनिना) सारभूत आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ परमागम प्रणीत करेल छे. आमां ज्ञानसमयनी प्रसिद्धि अर्थे शब्दसमयना संबंधथी (शुद्ध-जीवास्तिकायप्रमुख) अर्थसमय कहेवानो तेमनो इरादो छे. माटे मुमुक्षुओए निज कल्याण माटे आ परमागमनो ऊंडाणथी अभ्यास कर्तव्य छे.

पूज्य गुरुदेवश्रीना श्रीमुखे आ ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ परमागम उपर अनेक वार प्रवचनो थयेल, अने मुमुक्षुओने ते सांभळवा मळेल. हालमां टेप-अवतीर्ण प्रवचनो सांभळवा मळे छे, तेथी आपणे सौ तेमना अत्यंत ॠणी छीए अने तेथी तेमने उपकृतभावभीनुं हार्दिक वंदन करीए छीए.

आ परमागम शास्त्रमां दर्शावेला भावोने यथार्थ समजी, अंतरमां तदनुरूप परिणमन करी, अतीन्द्रिय ज्ञाननी प्राप्ति द्वारा अतीन्द्रिय आनंदने सर्वे जीवो अनुभवो एवी अंतरथी भावना भावीए छीए. श्रावण वद २, पूज्य बहेनश्री चंपाबेन-९०मो जन्मोत्सव वि. सं. २०५९; इ. स. २००३

साहित्यप्रकाशनसमिति,
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ- (सौराष्ट्र)