Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 30.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीविस्सदि जो हु जीविदो पुव्वं

सो जीवो पाणा पुण बलमिंदियमाउ उस्सासो ।।३०।।
प्राणैश्चतुर्भिर्जीवति जीविष्यति यः खलु जीवितः पूर्वम्
स जीवः प्राणाः पुनर्बलमिन्द्रियमायुरुच्छ्वासः ।।३०।।

जीवत्वगुणव्याख्येयम् जाण्युं? जो त्रणे लोकने अने त्रणे काळने सर्वज्ञ विनाना तमे जोई-जाणी लीधा तो तमे ज सर्वज्ञ थया, कारण के जे त्रण लोकने अने त्रण काळने जाणे ते ज सर्वज्ञ छे. अने जो सर्वज्ञ विनाना त्रणे लोकने अने त्रणे काळने तमे नथी जोई-जाणी लीधा तो पछी ‘त्रणे लोकमां अने त्रणे काळमां सर्वज्ञ नथी’ एम तमे कई रीते कही शको? आ रीते सिद्ध थाय छे के तमे करेलो सर्वज्ञनो निषेध योग्य नथी.

हे भाई! आत्मा एक पदार्थ छे अने ज्ञान तेनो स्वभाव छे; तेथी ते ज्ञाननो संपूर्ण विकास थतां एवुं कांई रहेतुं नथी के जे ते ज्ञानमां अज्ञात रहे. जेम परिपूर्ण उष्णताए परिणमेलो अग्नि समस्त दाह्यने बाळे छे, तेम परिपूर्ण ज्ञाने परिणमेलो आत्मा समस्त ज्ञेयने जाणे छे. आवी सर्वज्ञदशा आ क्षेत्रे आ काळे (अर्थात् आ क्षेत्रे आ काळमां जन्मेला जीवने) प्राप्त नहि थती होवा छतां सर्वज्ञत्वशक्तिवाळा निज आत्मानो स्पष्ट अनुभव आ क्षेत्रे आ काळे पण थई शके छे.

आ शास्त्र अध्यात्मशास्त्र होवाथी अहीं सर्वज्ञसिद्धिनो विस्तार करवामां आव्यो नथी; जिज्ञासुए ते अन्य शास्त्रोमांथी जोई लेवो. २९.

जे चार प्राणे जीवतो पूर्वे, जीवे छे, जीवशे,
ते जीव छे; ने प्राण इन्द्रिय-आयु-बळ-उच्छ्वास छे. ३०.

अन्वयार्थ[ यः खलु ] जे [ चतुर्भिः प्राणैः ] चार प्राणोथी [ जीवति ] जीवे छे, [ जीविष्यति ] जीवशे अने [ जीवितः पूर्वम् ] पूर्वे जीवतो हतो, [ सः जीवः ] ते जीव छे; [ पुनः प्राणाः ] अने प्राणो [ इन्द्रियम् ] इन्द्रिय, [ बलम् ] बळ, [ आयुः ] आयु तथा [ उच्छ्वासः ] उच्छ्वास छे.

टीकाआ, जीवत्वगुणनी व्याख्या छे.

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