Panchastikay Sangrah (Hindi).

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अर्थः–– यतीश्वर [श्री कुन्दकुन्दस्वामी] रजःस्थानको–भूमितलको–– छोड़कर चार अंगुल ऊपर आकाशमें चलते थे उससे मैं ऐसा समझता हूँ कि वे अंतरंगमें तथा बाह्यमें रजसे अपना अत्यन्त अस्पृष्टपना व्यक्त करते थे। [–अंतरंगमें रागादिक मलसे और बाह्यमें धूलसे अस्पृष्ट थे।]

*

जइ पउमणंदिणाहो सीमन्धरसामिदिव्वणाणेण।
ण विबोहइ तो समणा कहं सुमग्गं पयाणंति।।
[दर्शनसार]

अर्थः–– [महाविदेहक्षेत्रके वर्तमान तीर्थंकरदेव] श्री सीमन्धरस्वामीसे प्राप्त दिव्य ज्ञानके द्वारा श्री पद्मनन्दीनाथ [कुन्दकुन्दाचार्यदेव] ने बोध न दिया होता तो मुनिजन सच्चेमार्गको कैसे जानते?

*

हे कुन्दकुन्दादि आचार्य ! आपके वचन भी स्वरूपानुसन्धानमें इस पामरको परम उपकारभूत हुए हैं। इसलिये मैं आपको अतिशय भक्तिसे नमस्कार करता हूँ।

[ श्रीमद् राजचन्द्र]