Panchastikay Sangrah (Hindi). Translator's Notes.

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।। नमः श्रीसद्गुरुवे ।।
* उपोद्घात *
गवान कुंदकुंदाचार्यदेव प्रणीत यह ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ नामक शास्त्र ‘द्वितीय
श्रुतस्कंध’ के सर्वोत्कृष्ट आगमोंमेंसे एक है।
‘द्वितीय श्रुतस्कंध’ की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, यह हम पट्टावलियोंके आधारसे संक्षेपमें
देखेः––
आजसे २४८३ वर्ष पूर्व इस भरतक्षेत्रकी पुण्यभूमिमें जगतपूज्य परमभट्टारक भगवान श्री
महावीरस्वामी मोक्षमार्गका प्रकाश करनेके लिये समस्त पदार्थोंका स्वरूप अपनी सातिशय दिव्यध्वनि
द्वारा प्रगट कर रहे थे। उनके निर्वाणके पश्चात् पाँच श्रुतकेवली हुए, जिनमें अन्तिम श्रुतकेवली श्री
भद्रबाहुस्वामी थे। वहाँ तक तो द्वादशांगशास्त्रकी प्ररूपणासे निश्चयव्यवहारात्मक मोक्षमार्ग यथार्थ–
रूपमें प्रवर्तमान रहा। तत्पश्चात् कालदोषसे क्रमशः अंगोके ज्ञानकी व्युच्छित्ति होती गई। इस
प्रकार अपार ज्ञानसिंधुका बहुभाग विच्छेदको प्राप्त होनेके पश्चात् दूसरे भद्रबाहुस्वामी आचार्यकी
परिपाटीमें दो समर्थ मुनिवर हुए– एक श्री धरसेनाचार्य और दूसरे श्री गुणधराचार्य। उनसे प्राप्त
ज्ञानके द्वारा उनकी परंपरामें होनेवाले आचार्योने शास्त्रोंकी रचना की और वीर भगवानके उपदेशका
प्रवाह अच्छिन्न रखा।

श्री धरसेनाचार्यने आग्रायणीपूर्वके पंचम वस्तु अधिकारके महाकर्मप्रकृति नामक चतुर्थ प्राभृतका
ज्ञान था। उस ज्ञानामृतसे क्रमशः उनके बाद होनेवाले आचार्योंने षट्खंडागम, धवल, महाधवल,
जयधवल, गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार आदि शास्त्रोंकी रचना की। इस प्रकार प्रथम
श्रुतस्कंधकी उत्पत्ति हुई। उसमें मुख्यतः जीव और कर्मके संयोगसे उत्पन्न होनेवाली आत्माकी
संसारपर्यायका –गुणस्थान, मार्गणास्थान आदिका –वर्णन है, पर्यायार्थिक नयको प्रधान करके कथन
है। इस नयको अशुद्धद्रव्यार्थिक भी कहते है और अध्यात्मभाषामें अशुद्धनिश्चयनय अथवा व्यवहार कहा
जाता है।

श्री गुणधराचार्यको ज्ञानप्रवादपूर्वके दशम वस्तुके तृतीय प्राभृतका ज्ञान था। उस ज्ञानमेंसे
उनके पश्चात् होनेवाले आचार्योंने क्रमशः सिद्धान्त–रचना की। इस प्रकार सर्वज्ञ भगवान महावीरसे
चले आनेवाला ज्ञान आचार्य – परम्परा द्वारा भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवको प्राप्त हुआ। उन्होंने
पंचास्तिकायसंग्रह, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, अष्टपाहुड़ आदि शास्त्रोंकी रचना की। इस
प्रकार द्वितीय श्रुतस्कंधकी उत्पत्ति हुई। उसमें मुख्यतया ज्ञानकी प्रधानतापूर्वक शुद्धद्रव्यार्थिक नयसे
कथन है, आत्माके शुद्ध स्वरूपका वर्णन है।