कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य–पंचास्तिकायवर्णन
नुपपद्यमानं मुक्तौ जीवस्य सद्भावमावेदयतीति।। ३७।।
चेदयदि जीवरासी चेदगभावेण तिविहेण।। ३८।।
चेतयति जीवराशिश्चेतकभावेन त्रिविधेन।। ३८।।
चेतयितृत्वगुणव्याख्येयम्।
एके हि चेतयितारः प्रकृष्टतरमोहमलीमसेन प्रकृष्टतरज्ञानावरणमुद्रितानुभावेन ----------------------------------------------------------------------------- जीवद्रव्यमें अनन्त अज्ञान और किसीमें सान्त अज्ञान है – यह सब, १अन्यथा घटित न होता हुआ, मोक्षमें जीवके सद्भावको प्रगट करता है।। ३७।।
[कर्मणां फलम्] कर्मोंके फलको, [एकः तु] एक जीवराशि [कार्यं] कार्यको [अथ] और [एकः] एक जीवराशि [ज्ञानम्] ज्ञानको [चेतयति] चेतती [–वेदती] है। --------------------------------------------------------------------------
द्रव्यरूपसे शाश्वत है–यह बात कैसे घटित होगी? [२] प्रत्येक द्रव्य नित्य रहकर उसमें पर्यायका नाश
होता रहता है– यह बात कैसे घटित होगी? [३–६] प्रत्येक द्रव्य सर्वदा अनागत पर्यायसे भाव्य, सर्वदा
अतीत पर्यायसे अभाव्य, सर्वदा परसे शून्य और सर्वदा स्वसे अशून्य है– यह बातें कैसे घटित होंगी?
[७] किसी जीवद्रव्यमें अनन्त ज्ञान हैे– यह बात कैसे घटित होगी? और [८] किसी जीवद्रव्यमें सान्त
अज्ञान है [अर्थात् जीवद्रव्य नित्य रहकर उसमें अज्ञानपरिणामका अन्त आता है]– यह बात कैसे घटित
होगी? इसलिये इन आठ भावों द्वारा मोक्षमें जीवका अस्तित्व सिद्ध होता है।]
को जीवराशि ‘कर्मफळ’ने, कोई चेते ‘ज्ञान’ने। ३८।