Panchastikay Sangrah (Hindi). Gatha: 38.

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कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य–पंचास्तिकायवर्णन
[
७१
नुपपद्यमानं मुक्तौ जीवस्य सद्भावमावेदयतीति।। ३७।।
कम्माणं फलमेक्को एक्को कज्जं तु णाणमध एक्को।
चेदयदि जीवरासी चेदगभावेण तिविहेण।। ३८।।
कर्मणां फलमेकः एकः कार्यं तु ज्ञानमथैकः।
चेतयति जीवराशिश्चेतकभावेन त्रिविधेन।। ३८।।
चेतयितृत्वगुणव्याख्येयम्।
एके हि चेतयितारः प्रकृष्टतरमोहमलीमसेन प्रकृष्टतरज्ञानावरणमुद्रितानुभावेन
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जीवद्रव्यमें अनन्त अज्ञान और किसीमें सान्त अज्ञान है – यह सब,
अन्यथा घटित न होता हुआ,
मोक्षमें जीवके सद्भावको प्रगट करता है।। ३७।।
गाथा ३८
अन्वयार्थः– [त्रिविधेन चेतकभावेन] त्रिविध चेतकभाव द्वारा [एकः जीवराशिः] एक जीवराशि
[कर्मणां फलम्] कर्मोंके फलको, [एकः तु] एक जीवराशि [कार्यं] कार्यको [अथ] और [एकः]
एक जीवराशि [ज्ञानम्] ज्ञानको [चेतयति] चेतती [–वेदती] है।
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१। अन्यथा = अन्य प्रकारसे; दूसरी रीतिसे। [मोक्षमें जीवका अस्तित्व ही न रहता हो तो उपरोक्त आठ
भाव घटित हो ही नहीं सकते। यदि मोक्षमें जीवका अभाव ही हो जाता हो तो, [१] प्रत्येक द्रव्य
द्रव्यरूपसे शाश्वत है–यह बात कैसे घटित होगी? [२] प्रत्येक द्रव्य नित्य रहकर उसमें पर्यायका नाश
होता रहता है– यह बात कैसे घटित होगी? [३–६] प्रत्येक द्रव्य सर्वदा अनागत पर्यायसे भाव्य, सर्वदा
अतीत पर्यायसे अभाव्य, सर्वदा परसे शून्य और सर्वदा स्वसे अशून्य है– यह बातें कैसे घटित होंगी?
[७] किसी जीवद्रव्यमें अनन्त ज्ञान हैे– यह बात कैसे घटित होगी? और [८] किसी जीवद्रव्यमें सान्त
अज्ञान है [अर्थात् जीवद्रव्य नित्य रहकर उसमें अज्ञानपरिणामका अन्त आता है]– यह बात कैसे घटित
होगी? इसलिये इन आठ भावों द्वारा मोक्षमें जीवका अस्तित्व सिद्ध होता है।]
त्रणविध चेतकभावथी को जीवराशि ‘कार्य’ने,
को जीवराशि ‘कर्मफळ’ने, कोई चेते ‘ज्ञान’ने। ३८।