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अनिधनमनंतविषयं कैवल्यं चापि प्रज्ञप्तम्।। ४२।।
दर्शनोपयोगविशेषाणां नामस्वरूपाभिधानमेतत्।
चक्षुर्दर्शनमचक्षुर्दर्शनमवधिदर्शनं केवलदर्शनमिति नामाभिधानम्। आत्मा ह्यनंत– सर्वात्मप्रदेशव्यापिविशुद्धदर्शनसामान्यात्मा। स खल्वनादिदर्शनावरणकर्मावच्छन्नप्रदेशः सन्, यत्तदावरणक्षयोपशमाच्चक्षुरिन्द्रियावलम्बाच्च मूर्तद्रव्यं विकलं सामान्ये -----------------------------------------------------------------------------
अन्वयार्थः– [दर्शनम् अपि] दर्शन भी [चक्षुर्युतम्] चक्षुदर्शन, [अचक्षुर्युतम् अपि च] अचक्षुदर्शन, [अवधिना सहितम्] अवधिदर्शन [च अपि] और [अनंतविषयम्] अनन्त जिसका विषय है ऐसा [अनिधनम्] अविनाशी [कैवल्यं] केवलदर्शन [प्रज्ञप्तम्] – ऐसे चार भेदवाला कहा है।
टीकाः– यह, दर्शनोपयोगके भेदोंके नाम और स्वरूपका कथन है।
[१] चक्षुदर्शन, [२] अचक्षुदर्शन, [३] अवधिदर्शन और [४] केवलदर्शन – इस प्रकार [दर्शनोपयोगके भेदोंके] नामका कथन है।
[अब उसके स्वरूपका कथन किया जाता हैः–] आत्मा वास्तवमें अनन्त, सर्व आत्मप्रदेशोंमें व्यापक, विशुद्ध दर्शनसामान्यस्वरूप है। वह [आत्मा] वास्तवमें अनादि दर्शनावरणकर्मसे आच्छादित प्रदेशोंवाला वर्तता हुआ, [१] उस प्रकारके [अर्थात् चक्षुदर्शनके] आवरणके क्षयोपशमसे और चक्षु– इन्द्रियके अवलम्बनसे मूर्त द्रव्यको विकलरूपसे १सामान्यतः अवबोधन करता है --------------------------------------------------------------------------