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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
दर्शनमपि चक्षुर्युतमचक्षुर्युतमपि चावधिना सहितम्।
अनिधनमनंतविषयं कैवल्यं चापि प्रज्ञप्तम्।। ४२।।
दर्शनोपयोगविशेषाणां नामस्वरूपाभिधानमेतत्।
चक्षुर्दर्शनमचक्षुर्दर्शनमवधिदर्शनं केवलदर्शनमिति नामाभिधानम्। आत्मा ह्यनंत–
सर्वात्मप्रदेशव्यापिविशुद्धदर्शनसामान्यात्मा। स खल्वनादिदर्शनावरणकर्मावच्छन्नप्रदेशः सन्,
यत्तदावरणक्षयोपशमाच्चक्षुरिन्द्रियावलम्बाच्च मूर्तद्रव्यं विकलं सामान्ये
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गाथा ४२
अन्वयार्थः– [दर्शनम् अपि] दर्शन भी [चक्षुर्युतम्] चक्षुदर्शन, [अचक्षुर्युतम् अपि च]
अचक्षुदर्शन, [अवधिना सहितम्] अवधिदर्शन [च अपि] और [अनंतविषयम्] अनन्त जिसका विषय
है ऐसा [अनिधनम्] अविनाशी [कैवल्यं] केवलदर्शन [प्रज्ञप्तम्] – ऐसे चार भेदवाला कहा है।
टीकाः– यह, दर्शनोपयोगके भेदोंके नाम और स्वरूपका कथन है।
[१] चक्षुदर्शन, [२] अचक्षुदर्शन, [३] अवधिदर्शन और [४] केवलदर्शन – इस प्रकार
[दर्शनोपयोगके भेदोंके] नामका कथन है।
[अब उसके स्वरूपका कथन किया जाता हैः–] आत्मा वास्तवमें अनन्त, सर्व आत्मप्रदेशोंमें
व्यापक, विशुद्ध दर्शनसामान्यस्वरूप है। वह [आत्मा] वास्तवमें अनादि दर्शनावरणकर्मसे आच्छादित
प्रदेशोंवाला वर्तता हुआ, [१] उस प्रकारके [अर्थात् चक्षुदर्शनके] आवरणके क्षयोपशमसे और चक्षु–
इन्द्रियके अवलम्बनसे मूर्त द्रव्यको विकलरूपसे १सामान्यतः अवबोधन करता है
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१। सामान्यतः अवबोधन करना = देखना। [सामान्य अवबोध अर्थात् सामान्य प्रतिभास वह दर्शन है।]