Panchastikay Sangrah (Hindi).

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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
अविभक्तप्रदेशत्वलक्षणं द्रव्यगुणानामनन्यत्वमभ्युपगम्यते। विभक्तप्रदेशत्वलक्षणं त्वन्यत्व–
मनन्यत्वं च नाभ्युपगम्यते। तथा हि–यथैकस्य परमाणोरेकेनात्मप्रदेशेन सहाविभक्तत्वादनन्य–त्वं,
तथैकस्य परमाणोस्तद्वर्तिनां स्पर्शरसगंधवर्णादिगुणानां चाविभक्तप्रदेशत्वादनन्यत्वम्। यथा
त्वत्यंतविप्रकृष्टयोः सह्यविंध्ययोरत्यंतसन्निकृष्टयोश्च मिश्रितयोस्तोयपयसोर्विभक्तप्रदेशत्वलक्षण–
मन्यत्वमनन्यत्वं च, न तथा द्रव्यगुणानां विभक्तप्रदेशत्वाभावादन्यत्वमनन्यत्वं चेति।। ४५।।
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टीकाः– यह, द्रव्य और गुणोंके स्वोचित अनन्यपनेका कथन है [अर्थात् द्रव्य और गुणोंको
कैसा अनन्यपना घटित होता है वह यहाँ कहा है]।
द्रव्य और गुणोंको अविभक्तप्रदेशत्वस्वरूप अनन्यपना स्वीकार किया जाता है; परन्तु
विभक्तप्रदेशत्वस्वरूप अन्यपना तथा [विभक्तप्रदेशत्वस्वरूप] अनन्यपना स्वीकार नहीं किया जाता।
वह स्पष्ट समझाया जाता हैः– जिस प्रकार एक परमाणुको एक स्वप्रदेशके साथ अविभक्तपना होनेसे
अनन्यपना है, उसी प्रकार एक परमाणुको तथा उसमें रहनेवाले स्पर्श–रस–गंध–वर्ण आदि गुणोंको
अविभक्त प्रदेश होनेसे [अविभक्त–प्रदेशत्वस्वरूप] अनन्यपना है; परन्तु जिस प्रकार अत्यन्त दूर ऐसे
सह्य और विंध्यको विभक्तप्रदेशत्वस्वरूप अन्यपना है तथा अत्यन्त निकट ऐसे मिश्रित क्षीर–नीरको
विभक्तप्रदेशत्वस्वरूप अनन्यपना है, उसी प्रकार द्रव्य और गुणोंको विभक्त प्रदेश न होनेसे
[विभक्तप्रदेशत्वस्वरूप] अन्यपना तथा [विभक्तप्रदेशत्वस्वरूप] अनन्यपना नहीं है।। ४५।।
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१। अविभक्त = अभिन्न। [द्रव्य और गुणोंके प्रदेश अभिन्न है इसलिये द्रव्य और गुणोंको अभिन्नप्रदेशत्वस्वरूप
अनन्यपना है।]

२। अत्यन्त दूर स्थित सह्य और विंध्य नामके पर्वतोंको भिन्नप्रदेशत्वस्वरूप अन्यपना है।
३। अत्यन्त निकट स्थित मिश्रित दूध–जलको भिन्नप्रदेशत्वस्वरूप अनन्यपना है। द्रव्य और गुणोंको ऐसा
अनन्यपना नहीं है, किन्तु अभिन्नप्रदेशत्वस्वरूप अनन्यपना है।