चतुर्णां शीतस्निग्धशीतरूक्षोष्णस्निग्धोष्णरूक्षरूपाणां स्पर्शपर्यायद्वंद्वानामन्यतमेनैकेनैकदा स्पर्शो वर्तते।
एवमयमुक्तगुणवृत्तिः परमाणुः शब्दस्कंधपरिणतिशक्तिस्वभावात् शब्दकारणम्। एकप्रदेशत्वेन
शब्दपर्यायपरिणतिवृत्त्यभावादशब्दः। स्निग्धरूक्षत्वप्रत्ययबंधवशादनेकपरमाण्वेक–
त्वपरिणतिरूपस्कंधांतरितोऽपि स्वभावमपरित्यजन्नुपात्तसंख्यत्वादेक एव द्रव्यमिति।। ८१।।
जं हवदि मुत्तमण्णं तं सव्वं पुग्गलं जाणे।। ८२।।
यद्भवति मूर्तमन्यत् तत्सर्वं पुद्गलं जानीयात्।। ८२।।
उष्ण–स्निग्ध और उष्ण–रूक्ष इन चार स्पर्शपर्यायोंके युगलमेंसे एक समय किसी एक युगक सहित
स्पर्श वर्तता है। इस प्रकार जिसमें गुणोंका वर्तन [–अस्तित्व] कहा गया है ऐसा यह परमाणु
शब्दस्कंधरूपसे परिणमित होने की शक्तिरूप स्वभाववाला होनेसे शब्दका कारण है; एकप्रदेशी होनेके
कारण शब्दपर्यायरूप परिणति नही वर्तती होनेसे अशब्द है; और
छोड़ता हुआ, संख्याको प्राप्त होनेसे [अर्थात् परिपूर्ण एकके रूपमें पृथक् गिनतीमें आनेसे]
सर्वं] वह सब [पुद्गलं जानीयात्] पुद्गल जानो।
२। यहाँ ऐसा बतलाया है कि स्कंधमें भी प्रत्येक परमाणु स्वयं परिपूर्ण है, स्वतंत्र है, परकी सहायतासे रहित ,
इन्द्रिय वडे उपभोग्य, इन्द्रिय, काय, मन ने कर्म जे,
वळी अन्य जे कंई मूर्त ते सघळुंय पुद्गल जाणजे। ८२।