कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य–पंचास्तिकायवर्णन
पञ्चानां वर्णपर्यायाणामन्यतमेनैकेनैकदा वर्णो वर्तते। उभयोर्गंधपर्याययोरन्यतरेणैकेनैकदा गंधो वर्तते। चतुर्णां शीतस्निग्धशीतरूक्षोष्णस्निग्धोष्णरूक्षरूपाणां स्पर्शपर्यायद्वंद्वानामन्यतमेनैकेनैकदा स्पर्शो वर्तते। एवमयमुक्तगुणवृत्तिः परमाणुः शब्दस्कंधपरिणतिशक्तिस्वभावात् शब्दकारणम्। एकप्रदेशत्वेन शब्दपर्यायपरिणतिवृत्त्यभावादशब्दः। स्निग्धरूक्षत्वप्रत्ययबंधवशादनेकपरमाण्वेक– त्वपरिणतिरूपस्कंधांतरितोऽपि स्वभावमपरित्यजन्नुपात्तसंख्यत्वादेक एव द्रव्यमिति।। ८१।।
जं हवदि मुत्तमण्णं तं सव्वं पुग्गलं जाणे।। ८२।।
यद्भवति मूर्तमन्यत् तत्सर्वं पुद्गलं जानीयात्।। ८२।।
----------------------------------------------------------------------------- दो गंधपर्यायोंमेंसे एक समय किसी एक [गंधपर्याय] सहित गंध वर्तता है; शीत–स्निग्ध, शीत–रूक्ष, उष्ण–स्निग्ध और उष्ण–रूक्ष इन चार स्पर्शपर्यायोंके युगलमेंसे एक समय किसी एक युगक सहित स्पर्श वर्तता है। इस प्रकार जिसमें गुणोंका वर्तन [–अस्तित्व] कहा गया है ऐसा यह परमाणु शब्दस्कंधरूपसे परिणमित होने की शक्तिरूप स्वभाववाला होनेसे शब्दका कारण है; एकप्रदेशी होनेके कारण शब्दपर्यायरूप परिणति नही वर्तती होनेसे अशब्द है; और १स्निग्ध–रूक्षत्वके कारण बन्ध होनेसे अनेक परमाणुओंकी एकत्वपरिणतिरूप स्कन्धके भीतर रहा हो तथापि स्वभावको नहीं छोड़ता हुआ, संख्याको प्राप्त होनेसे [अर्थात् परिपूर्ण एकके रूपमें पृथक् गिनतीमें आनेसे] २अकेला ही द्रव्य है।। ८१।।
अन्वयार्थः– [इन्द्रियैः उपभोग्यम् च] इन्द्रियोंं द्वारा उपभोग्य विषय, [इन्द्रियकायाः] इन्द्रियाँ, शरीर, [मनः] मन, [कर्माणि] कर्म [च] और [अन्यत् यत्] अन्य जो कुछ [मूर्त्तं भवति] मूर्त हो [तत् सर्वं] वह सब [पुद्गलं जानीयात्] पुद्गल जानो। -------------------------------------------------------------------------- १। स्निग्ध–रूक्षत्व=चिकनाई और रूक्षता। २। यहाँ ऐसा बतलाया है कि स्कंधमें भी प्रत्येक परमाणु स्वयं परिपूर्ण है, स्वतंत्र है, परकी सहायतासे रहित ,
इन्द्रिय वडे उपभोग्य, इन्द्रिय, काय, मन ने कर्म जे,
वळी अन्य जे कंई मूर्त ते सघळुंय पुद्गल जाणजे। ८२।