Panchastikay Sangrah (Hindi). Akashdravya-astikay ka vyakhyan Gatha: 90.

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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द

१४२

चेत्, सर्वे हि गतिस्थितिमंतः पदार्थाः स्वपरिणामैरेव निश्चयेन गतिस्थिती कुर्वंतीति।। ८९।।
–इति धर्माधर्मद्रव्यास्तिकायव्याख्यानं समाप्तम्।

अथ आकाशद्रव्यास्तिकायव्याख्यानम्।

सव्वेसिं जीवाणं सेसासं तह य पुग्गलाणं च।
जं देदि विवरमखिलं तं लोगे हवदि आगासं।। ९०।।

सर्वेषां जीवानां शेषाणां तथैव पुद्गलानां च।
यद्रदाति विवरमखिलं तल्लोके भवत्याकाशम्।। ९०।।

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प्रश्नः– ऐसा हो तो गतिस्थितिमान पदार्थोंको गतिस्थिति किस प्रकार होती है?

उत्तरः– वास्तवमें समस्त गतिस्थितिमान पदार्थ अपने परिणामोंसे ही निश्चयसे गतिस्थिति करते हैं।। ८९।।

इस प्रकार धर्मद्रव्यास्तिकाय और अधर्मद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान समाप्त हुआ।

अब आकाशद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान है।

गाथा ९०

अन्वयार्थः– [लोके] लोकमें [जीवानाम्] जीवोंको [च] और [पुद्गलानाम्] पुद्गलोंको [तथा एव] वैसे ही [सर्वेषाम् शेषाणाम्] शेष समस्त द्रव्योंको [यद्] जो [अखिलं विवरं] सम्पूर्ण अवकाश [ददाति] देता है, [तद्] वह [आकाशम् भवति] आकाश है। --------------------------------------------------------------------------

जे लोकमां जीव–पुद्गलोने, शेष द्रव्य समस्तने
अवकाश दे छे पूर्ण, ते आकाशनामक द्रव्य छे। ९०।