शुद्धं बुधानामिह तत्त्वमुक्तम्।
पदार्थभङ्गेन कृतावतारं
प्रकीर्त्यते संप्रति वर्त्म तस्य।। ७।।
तेसिं पयत्थभंगं मग्गं मोक्खस्स वोच्छामि।। १०५।।
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[प्रथम, श्री अमृतचन्द्राचार्यदेव पहले श्रुतस्कन्धमें क्या कहा गया है और दूसरे श्रुतस्कन्धमें क्या कहा जाएगा वह श्लोक द्वारा अति संक्षेपमें दर्शाते हैंः]
पुरुषोंको [बुद्धिमान जीवोंको] शुद्ध तत्त्व [शुद्धात्मतत्त्व] का उपदेश दिया गया। अब पदार्थभेद द्वारा उपोद्घात करके [–नव पदार्थरूप भेद द्वारा प्रारम्भ करके] उसके मार्गका [–शुद्धात्मतत्त्वके मार्गका अर्थात् उसके मोक्षके मार्गका] वर्णन किया जाता है। [७]
[अब इस द्वितीय श्रुतस्कन्धमें श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवविरचित गाथासूत्रका प्रारम्भ किया जाता हैः] --------------------------------------------------------------------------
भाखुं पदार्थविकल्प तेम ज मोक्ष केरा मार्गने। १०५।