Panchastikay Sangrah (Hindi). Navpadarth purvak mokshmarg prapanch varnan Shlok: 7 Gatha: 105.

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–२–
नवपदार्थपूर्वक
मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
द्रव्यस्वरूपप्रतिपादनेन
शुद्धं बुधानामिह तत्त्वमुक्तम्।
पदार्थभङ्गेन कृतावतारं
प्रकीर्त्यते संप्रति वर्त्म तस्य।। ७।।
अभिवंदिऊण सिरसा अपुणब्भवकारणं महावीरं।
तेसिं पयत्थभंगं मग्गं मोक्खस्स
वोच्छामि।। १०५।।
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[प्रथम, श्री अमृतचन्द्राचार्यदेव पहले श्रुतस्कन्धमें क्या कहा गया है और दूसरे श्रुतस्कन्धमें
क्या कहा जाएगा वह श्लोक द्वारा अति संक्षेपमें दर्शाते हैंः]
[श्लोकार्थः–] यहाँ [इस शास्त्रके प्रथम श्रुतस्कन्धमें] द्रव्यस्वरूपके प्रतिपादन द्वारा बुद्ध
पुरुषोंको [बुद्धिमान जीवोंको] शुद्ध तत्त्व [शुद्धात्मतत्त्व] का उपदेश दिया गया। अब पदार्थभेद
द्वारा उपोद्घात करके [–नव पदार्थरूप भेद द्वारा प्रारम्भ करके] उसके मार्गका [–शुद्धात्मतत्त्वके
मार्गका अर्थात् उसके मोक्षके मार्गका] वर्णन किया जाता है। [७]
[अब इस द्वितीय श्रुतस्कन्धमें श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवविरचित गाथासूत्रका प्रारम्भ किया
जाता हैः]
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शिरसा नमी अपुनर्जनमना हेतु श्री महावीरने,
भाखुं पदार्थविकल्प तेम ज मोक्ष केरा मार्गने। १०५।