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तेषां पदार्थभङ्गं मार्गं मोक्षस्य वक्ष्यामि।। १०५।।
आप्तस्तुतिपुरस्सरा प्रतिज्ञेयम्।
अमुना हि प्रवर्तमानमहाधर्मतीर्थस्य मूलकर्तृत्वेनापुनर्भवकारणस्य भगवतः परमभट्टारक– महादेवाधिदेवश्रीवर्द्धमानस्वामिनः सिद्धिनिबंधनभूतां भावस्तुतिमासूक्र्य, कालकलितपञ्चास्ति–कायानां पदार्थविकल्पो मोक्षस्य मार्गश्च वक्तव्यत्वेन प्रतिज्ञात इति।। १०५।।
मोक्षस्य भवति मार्गो भव्यानां लब्धबुद्धीनाम्।। १०६।।
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अन्वयार्थः– [अपुनर्भवकारणं] अपुनर्भवके कारण [महावीरम्] श्री महावीरको [शिरसा अभिवंद्य] शिरसा वन्दन करके, [तेषां पदार्थभङ्गं] उनका पदार्थभेद [–काल सहित पंचास्तिकायका नव पदार्थरूप भेद] तथा [मोक्षस्य मार्गं] मोक्षका मार्ग [वक्ष्यामि] कहूँगा।
टीकाः– यह, आप्तकी स्तुतिपूर्वक प्रतिज्ञा है।
प्रवर्तमान महाधर्मतीर्थके मूल कर्तारूपसे जो अपुनर्भवके कारण हैं ऐसे भगवान, परम भट्टारक, महादेवाधिदेव श्री वर्धमानस्वामीकी, सिद्धत्वके निमित्तभूत भावस्तुति करके, काल सहित पंचास्तिकायका पदार्थभेद [अर्थात् छह द्रव्योंका नव पदार्थरूप भेद] तथा मोक्षका मार्ग कहनेकी इन गाथासूत्रमें प्रतिज्ञा की गई है।। १०५।। -------------------------------------------------------------------------- अपुनर्भव = मोक्ष। [परम पूज्य भगवान श्री वर्धमानस्वामी, वर्तमानमें प्रवर्तित जो रत्नत्रयात्मक महाधर्मतीर्थ
ते होय छे निर्वाणमारग लब्धबुद्धि भव्यने। १०६।