कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
मोक्षमार्गस्यैव तावत्सूचनेयम्।
सम्यक्त्वज्ञानयुक्तमेव नासम्यक्त्वज्ञानयुक्तं, चारित्रमेव नाचारित्रं, रागद्वेषपरिहीणमेव न रागद्वेषापरिहीणम्, मोक्षस्यैव न भावतो बंधस्य, मार्ग एव नामार्गः, भव्यानामेव नाभव्यानां, लब्धबुद्धीनामेव नालब्धबुद्धीनां, क्षीणकषायत्वे भवत्येव न कषायसहितत्वेभवतीत्यष्टधा नियमोऽत्र द्रष्टव्यः।। १०६।। -----------------------------------------------------------------------------
[रागद्वेषपरिहीणम्] कि जो रागद्वेषसे रहित हो वह, [लब्धबुद्धीनाम्] लब्धबुद्धि [भव्यानां] भव्यजीवोंको [मोक्षस्य मार्गः] मोक्षका मार्ग [भवति] होता है।
सम्यक्त्व और ज्ञानसे युक्त ही –न कि असम्यक्त्व और अज्ञानसे युक्त, चारित्र ही – न कि अचारित्र, रागद्वेष रहित हो ऐसा ही [चारित्र] – न कि रागद्वेष सहित होय ऐसा, मोक्षका ही – १भावतः न कि बन्धका, मार्ग ही – न कि अमार्ग, भव्योंको ही – न कि अभव्योंको , २लब्धबुद्धियों को ही – न कि अलब्धबुद्धियोंको, ३क्षीणकषायपनेमें ही होता है– न कि कषायसहितपनेमें होता है। इस प्रकार आठ प्रकारसे नियम यहाँ देखना [अर्थात् इस गाथामें उपरोक्त आठ प्रकारसे नियम कहा है ऐसा समझना]।। १०६।। -------------------------------------------------------------------------- १। भावतः = भाव अनुसार; आशय अनुसार। [‘मोक्षका’ कहते ही ‘बन्धका नहीं’ ऐसा भाव अर्थात् आशय स्पष्ट
२। लब्धबुद्धि = जिन्होंने बुद्धि प्राप्त की हो ऐसे। ३। क्षीणकषायपनेमें ही = क्षीणकषायपना होते ही ; क्षीणकषायपना हो तभी। [सम्यक्त्वज्ञानयुक्त चारित्र – जो