Panchastikay Sangrah (Hindi). Gatha: 108.

< Previous Page   Next Page >


Page 166 of 264
PDF/HTML Page 195 of 293

 

background image
१६६
] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
जीवाजीवा भावा पुण्णं पावं च आसवं तेसिं।
संवरणं णिज्जरणं बंधो
मोक्खो य ते अट्ठा।। १०८।।
जीवाजीवौ भावो पुण्यं पापं चास्रवस्तयोः।
संवरनिर्जरबंधा मोक्षश्च ते अर्थाः।। १०८।।
पदार्थानां नामस्वरूपाभिधानमेतत्।
जीवः, अजीवः, पुण्यं, पापं, आस्रवः, संवरः, निर्जरा, बंधः, मोक्ष इति नवपदार्थानां नामानि।
तत्र चैतन्यलक्षणो जीवास्तिक एवेह जीवः। चैतन्याभावलक्षणोऽजीवः। स पञ्चधा पूर्वोक्त एव–
पुद्गलास्तिकः, धर्मास्तिकः, अधर्मास्तिकः, आकाशास्तिकः, कालद्रव्यञ्चेति। इमौ हि जीवाजीवौ
पृथग्भूतास्तित्वनिर्वृत्तत्वेन
-----------------------------------------------------------------------------
गाथा १०८
अन्वयार्थः– [जीवाजीवौ भावौ] जीव और अजीव–दो भाव [अर्थात् मूल पदार्थ] तथा
[तयोः] उन दो के [पुण्यं] पुण्य, [पापं च] पाप, [आस्रवः] आस्रव, [संवरनिर्जरबंधः] संवर,
निर्जरा, बन्ध [च] और [मोक्षः] मोक्ष–[ते अर्थाः ] वह [नव] पदार्थ हैं।
टीकाः– यह, पदार्थोंके नाम और स्वरूपका कथन है।
जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष–इस प्रकार नव पदार्थोंके नाम
हैं।
उनमें, चैतन्य जिसका लक्षण है ऐसा जीवास्तिक ही [–जीवास्तिकाय ही] यहाँ जीव है।
चैतन्यका अभाव जिसका लक्षण है वह अजीव है; वह [अजीव] पाँच प्रकारसे पहले कहा ही है–
पुद्गलास्तिक, धर्मास्तिक, अधर्मास्तिक, आकाशास्तिक और कालद्रव्य। यह जीव और अजीव
[दोनों] पृथक् अस्तित्व द्वारा निष्पन्न होनेसे भिन्न जिनके स्वभाव हैं ऐसे [दो] मूल पदार्थ हैं ।
--------------------------------------------------------------------------
वे भाव–जीव अजीव, तद्गत पुण्य तेम ज पाप ने
आसरव, संवर, निर्जरा, वळी बंध, मोक्ष–पदार्थ छे। १०८।