जीवस्य, तन्निमित्तः कर्मपरिणामः पुद्गलानाञ्च पुण्यम्। अशुभपरिणामो जीवस्य, तन्निमित्तः कर्म–
परिणामः पुद्गलानाञ्च पापम्। मोहरागद्वेषपरिणामो जीवस्य, तन्निमित्तः कर्मपरिणामो योगद्वारेण
प्रविशतां पुद्गलानाञ्चास्रवः। मोहरागद्वेषपरिणामनिरोधो जीवस्य, तन्निमित्तः कर्मपरिणामनिरोधो
योगद्वारेण प्रविशतां पुद्गलानाञ्च संवरः। कर्मवीर्यशातनसमर्थो बहिरङ्गांतरङ्गतपोभिर्बृंहित–शुद्धोपयोगो
जीवस्य, तदनुभावनीरसीभूतानामेकदेशसंक्षयः समुपात्तकर्मपुद्गलानाञ्च निर्जरा।
मोहरागद्वेषस्निग्धपरिणामो जीवस्य, तन्निमित्तेन कर्मत्वपरिणतानां जीवेन सहान्योन्यसंमूर्च्छनं
पुद्गलानाञ्च बंधः। अत्यंतशुद्धात्मोपलम्भो जीवस्य, जीवेन सहात्यंत–
ऐसे पुद्गलोंके कर्मपरिणाम [–शुभकर्मरूप परिणाम] वह पुण्य हैं। जीवके अशुभ परिणाम [वह पाप
हैं] तथा वे [अशुभ परिणाम] जिसका निमित्त हैं ऐसे पुद्गलोंके कर्मपरिणाम [–अशुभकर्मरूप
परिणाम] वह पाप हैं। जीवके मोहरागद्वेषरूप परिणाम [वह आस्रव हैं] तथा वे [मोहरागद्वेषरूप
परिणाम] जिसका निमित्त हैं ऐसे जो योगद्वारा प्रविष्ट होनेवाले पुद्गलोंके कर्मपरिणाम वह आस्रव
हैं। जीवके मोहरागद्वेषरूप परिणामका निरोध [वह संवर हैं] तथा वह [मोहरागद्वेषरूप परिणामका
निरोध] जिसका निमित्त हैं ऐसा जो योगद्वारा प्रविष्ट होनेवाले पुद्गलोंके कर्मपरिणामका निरोध वह
संवर है। कर्मके वीर्यका [–कर्मकी शक्तिका]
[–वृद्धिको प्राप्त शुद्धोपयोगके निमित्तसे] नीरस हुए ऐसे उपार्जित कर्मपुद्गलोंका एकदेश
परिणामके] निमित्तसे कर्मरूप परिणत पुद्गलोंका जीवके साथ अन्योन्य अवगाहन [–विशिष्ट शक्ति
सहित एकक्षेत्रावगाहसम्बन्ध] वह बन्ध है। जीवकी अत्यन्त शुद्ध आत्मोपलब्धि [वह मोक्ष है] तथा
कर्मपुद्गलोंका जीवसे अत्यन्त विश्लेष [वियोग] वह मोक्ष है।। १०८।।
२। संक्षय = सम्यक् प्रकारसे क्षय।