कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
एते स्पर्शनरसनेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सति स्पर्शरसयोः परिच्छेत्तारो द्वीन्द्रिया अमनसो भवंतीति।। ११४।।
जाणंति रसं फासं गंधं तेइंदिया जीवा।। ११५।।
जानन्ति रसं स्पर्शं गंधं त्रींद्रियाः जीवाः।। ११५।।
त्रीन्द्रियप्रकारसूचनेयम्।
एते स्पर्शनरसनघ्राणेंद्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेंद्रियावरणोदये नोइंद्रियावरणोदये च सति स्पर्शरसगंधानां परिच्छेत्तारस्त्रीन्द्रिया अमनसो भवंतीति।। ११५।। -----------------------------------------------------------------------------
स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रियके [–इन दो भावेन्द्रियोंके] आवरणके क्षयोपशमके कारण तथा शेष इन्द्रियोंके [–तीन भावेन्द्रियोंके] आवरणका उदय तथा मनके [–भावमनके] आवरणका उदय होनेसे स्पर्श और रसको जाननेवाले यह [शंबूक आदि] जीव मनरहित द्वीन्द्रिय जीव हैं।। ११४।।
अन्वयार्थः– [युकाकुंभीमत्कुणपिपीलिकाः] जू, कुंभी, खटमल, चींटी और [वृश्चिकादयः] बिच्छू आदि [कीटाः] जन्तु [रसं स्पर्शं गंधं] रस, स्पर्श और गंधको [जानन्ति] जानते हैं; [त्रींद्रियाः जीवाः] वे त्रीन्द्रिय जीव हैं।
स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और घ्राणेन्द्रियके आवरणके क्षयोपशमके कारण तथा शेष इन्द्रियोंके आवरणका उदय तथा मनके आवरणका उदय होनेसे स्पर्श, रस और गन्धको जाननेवाले यह [जू आदि] जीव मनरहित त्रीन्द्रिय जीव हैं।। ११५।। --------------------------------------------------------------------------
रस, गंध तेम ज स्पर्श जाणे, जीव त्रीन्द्रिय तेह छे। ११५।