Panchastikay Sangrah (Hindi). Gatha: 115.

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कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
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१७३
एते स्पर्शनरसनेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सति
स्पर्शरसयोः परिच्छेत्तारो द्वीन्द्रिया अमनसो भवंतीति।। ११४।।
जूगागुंभीमक्कणपिपीलिया विच्छुयादिया कीडा।
जाणंति रसं फासं गंधं तेइंदिया जीवा।। ११५।।
यूकाकुंभीमत्कुणपिपीलिका वृश्चिकादयः कीटाः।
जानन्ति रसं स्पर्शं गंधं त्रींद्रियाः जीवाः।। ११५।।
त्रीन्द्रियप्रकारसूचनेयम्।
एते स्पर्शनरसनघ्राणेंद्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेंद्रियावरणोदये नोइंद्रियावरणोदये च सति
स्पर्शरसगंधानां परिच्छेत्तारस्त्रीन्द्रिया अमनसो भवंतीति।। ११५।।
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स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रियके [–इन दो भावेन्द्रियोंके] आवरणके क्षयोपशमके कारण तथा
शेष इन्द्रियोंके [–तीन भावेन्द्रियोंके] आवरणका उदय तथा मनके [–भावमनके] आवरणका उदय
होनेसे स्पर्श और रसको जाननेवाले यह [शंबूक आदि] जीव मनरहित द्वीन्द्रिय जीव हैं।। ११४।।
गाथा ११५
अन्वयार्थः– [युकाकुंभीमत्कुणपिपीलिकाः] जू, कुंभी, खटमल, चींटी और [वृश्चिकादयः] बिच्छू
आदि [कीटाः] जन्तु [रसं स्पर्शं गंधं] रस, स्पर्श और गंधको [जानन्ति] जानते हैं; [त्रींद्रियाः
जीवाः] वे त्रीन्द्रिय जीव हैं।
टीकाः– यह, त्रीन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना है।
स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और घ्राणेन्द्रियके आवरणके क्षयोपशमके कारण तथा शेष इन्द्रियोंके
आवरणका उदय तथा मनके आवरणका उदय होनेसे स्पर्श, रस और गन्धको जाननेवाले यह [जू
आदि] जीव मनरहित त्रीन्द्रिय जीव हैं।। ११५।।
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जूं,कुंभी, माकड, कीडी तेम ज वृश्चिकादिक जंतु जे
रस, गंध तेम ज स्पर्श जाणे, जीव
त्रीन्द्रिय तेह छे। ११५।