कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
अथ पुण्यपापपदार्थव्याख्यानम्।
विद्यते तस्य शुभो वा अशुभो वा भवति परिणामः।। १३१।।
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अब पुण्य–पापपदार्थका व्यख्यान है।
अथवा [चित्तप्रसादः] चित्तप्रसन्नता [विद्यते] है, [तस्य] उसेे [शुभः वा अशुभः वा] शुभ अथवा अशुभ [परिणामः] परिणाम [भवति] है। -------------------------------------------------------------------------
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र ही संसारविच्छेदके कारणभूत हैं, परन्तु जब वह सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र अपूर्णदशामें होता है तब उसके साथ अनिच्छितवृत्तिसे वर्तते हुए विशिष्ट पुण्यमें संसारविच्छेदके कारणपनेका आरोप किया जाता है। वह आरोप भी वास्तविक कारणके–सम्यग्दर्शनादिके –अस्तित्वमें ही हो सकता है।]
ते जीवने शुभ वा अशुभ परिणामनो सद्भाव छे। १३१।