Panchastikay Sangrah (Hindi). Bandh padarth ka vyakhyan Gatha: 147.

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कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन

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अथ बंधपदार्थव्याख्यानम्।

जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा।
सो तेण हवदि बद्धो पोग्गलकम्मेण विविहेण।। १४७।।
यं शुभमशुभमुदीर्णं भावं रक्तः करोति यद्यात्मा।
स तेन भवति बद्धः पुद्गलकर्मणा विविधेन।। १४७।।

बन्धस्वरूपाख्यानमेतत्।

यदि खल्वयमात्मा परोपाश्रयेणानादिरक्तः कर्मोदयप्रभावत्वादुदीर्णं शुभमशुभं वा भावं करोति, तदा स आत्मा तेन निमित्तभूतेन भावेन पुद्गलकर्मणा विविधेन बद्धो भवति। तदत्र मोहरागद्वेषस्निग्धः शुभोऽशुभो वा परिणामो जीवस्य भावबन्धः, तन्निमित्तेन शुभाशुभकर्मत्वपरिणतानां जीवेन सहान्योन्यमूर्च्छनं पुद्गलानां द्रव्यबन्ध इति।। १४७।। -----------------------------------------------------------------------------

अब बंन्धपदार्थका व्याख्यान है।
गाथा १४७

अन्वयार्थः– [यदि] यदि [आत्मा] आत्मा [रक्तः] रक्त [विकारी] वर्तता हुआ [उदीर्णं] उदित [यम् शुभम् अशुभम् भावम्] शुभ या अशुभ भावको [करोति] करता है, तो [सः] वह आत्मा [तेन] उस भाव द्वारा [–उस भावके निमित्तसे] [विविधेन पुद्गलकर्मणा] विविध पुद्गलकर्मोंसे [बद्धः भवति] बद्ध होता है।

टीकाः– यह, बन्धके स्वरूपका कथन है।

यदि वास्तवमें यह आत्मा अन्यके [–पुद्गलकर्मके] आश्रय द्वारा अनादि कालसे रक्त रहकर कर्मोदयके प्रभावयुक्तरूप वर्तनेसे उदित [–प्रगट होनेवाले] शुभ या अशुभ भावको करता है, तो वह आत्मा उस निमित्तभूत भाव द्वारा विविध पुद्गलकर्मसे बद्ध होता है। इसलिये यहाँ [ऐसा कहा है कि], मोहरागद्वेष द्वारा स्निग्ध ऐसे जो जीवके शुभ या अशुभ परिणाम वह भावबन्ध है और उसके [–शुभाशुभ परिणामके] निमित्तसे शुभाशुभ कर्मरूप परिणत पुद्गलोंका जीवके साथ अन्योन्य अवगाहन [–विशिष्ट शक्ति सहित एकक्षेत्रावगाहसम्बन्ध] वह द्रव्य बन्ध है।। १४७।। -------------------------------------------------------------------------

जो आतमा उपरक्त करतो अशुभ वा शुभ भावने,
तो ते वडे ए विविध पुद्गलकर्मथी बंधाय छे। १४७।