Panchastikay Sangrah (Hindi). Bandh padarth ka vyakhyan Gatha: 147.

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कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
[
२१३
अथ बंधपदार्थव्याख्यानम्।
जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा।
सो तेण हवदि बद्धो पोग्गलकम्मेण विविहेण।। १४७।।
तो ते वडे ए विविध पुद्गलकर्मथी बंधाय छे। १४७।
यं शुभमशुभमुदीर्णं भावं रक्तः करोति यद्यात्मा।
स तेन भवति बद्धः पुद्गलकर्मणा विविधेन।। १४७।।
बन्धस्वरूपाख्यानमेतत्।
यदि खल्वयमात्मा परोपाश्रयेणानादिरक्तः कर्मोदयप्रभावत्वादुदीर्णं शुभमशुभं वा भावं करोति,
तदा स आत्मा तेन निमित्तभूतेन भावेन पुद्गलकर्मणा विविधेन बद्धो भवति। तदत्र मोहरागद्वेषस्निग्धः
शुभोऽशुभो वा परिणामो जीवस्य भावबन्धः, तन्निमित्तेन शुभाशुभकर्मत्वपरिणतानां जीवेन
सहान्योन्यमूर्च्छनं पुद्गलानां द्रव्यबन्ध इति।। १४७।।
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अब बंन्धपदार्थका व्याख्यान है।
गाथा १४७
अन्वयार्थः– [यदि] यदि [आत्मा] आत्मा [रक्तः] रक्त [विकारी] वर्तता हुआ [उदीर्णं]
उदित [यम् शुभम् अशुभम् भावम्] शुभ या अशुभ भावको [करोति] करता है, तो [सः] वह
आत्मा [तेन] उस भाव द्वारा [–उस भावके निमित्तसे] [विविधेन पुद्गलकर्मणा] विविध
पुद्गलकर्मोंसे [बद्धः भवति] बद्ध होता है।
टीकाः– यह, बन्धके स्वरूपका कथन है।
यदि वास्तवमें यह आत्मा अन्यके [–पुद्गलकर्मके] आश्रय द्वारा अनादि कालसे रक्त रहकर
कर्मोदयके प्रभावयुक्तरूप वर्तनेसे उदित [–प्रगट होनेवाले] शुभ या अशुभ भावको करता है, तो वह
आत्मा उस निमित्तभूत भाव द्वारा विविध पुद्गलकर्मसे बद्ध होता है। इसलिये यहाँ [ऐसा कहा है
कि], मोहरागद्वेष द्वारा स्निग्ध ऐसे जो जीवके शुभ या अशुभ परिणाम वह भावबन्ध है और उसके
[–शुभाशुभ परिणामके] निमित्तसे शुभाशुभ कर्मरूप परिणत पुद्गलोंका जीवके साथ अन्योन्य
अवगाहन [–विशिष्ट शक्ति सहित एकक्षेत्रावगाहसम्बन्ध] वह द्रव्य बन्ध है।। १४७।।
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जो आतमा उपरक्त करतो अशुभ वा शुभ भावने,