Panchastikay Sangrah (Hindi).

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विषय
गाथा
विषय
गाथा
कर्मको जीवभावका कर्तापना होनेके
कर्मविमुक्तपनेकी मुख्यतासे प्रभुत्व–
सम्बन्धमेंं पूर्वपक्ष
५९
गुणका व्याख्यान
७०
५९ वीं गाथामें कहे हुए पूर्वपक्षके
जीवके भेदोंका कथन
७१–७२
समाधानरूप सिद्धान्त
६०
बद्ध जीवको कर्मनिमित्तक षड्विधि
निश्चनय से जीव को अपने भावों का
गमन और मुक्त जीवको स्वाभाविक
कर्तापना और पुद्गलकर्मोंका
अकर्तापना
६१
ऐसा एक ऊर्ध्वगमन
७३
निश्चनयसे अभिन्न कारक होनेसे कर्म
पुद्गलद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान
और जीव स्वयं अपने–अपने रूपके
पुद्गलद्रव्यके भेद
७४
कर्ता हैं– तत्सम्बन्धी निरूपण
६२
पुद्गलद्रव्यके भेदोंका वर्णन
७५
यदि कर्म जीवको अनयोन्य अकर्तापना
स्कन्धोंमें ‘पुद्गल’ ऐसा जो व्यवहार
हो, तो अन्यका दिया हुआ फल अन्य
है उसका समर्थन
७६
भोगे, ऐसा प्रसंग आयेगा, –ऐसा दोष
परमाणु की व्याख्या
७७
बतलाकर पूर्वपक्षका निरूपण
६३
परमाणु भिन्न– भिन्न जातिके होनेका
कर्मयोग्य पुद्गल समस्त लोकमें व्याप्त
खण्डन
७८
हैं; इसलिये जहाँ आत्मा है वहाँ, बिना
शद्ब पुद्गलस्कन्धपर्याय होनेका कथन
७९
लाये ही, वे विद्यमान हैं–––तत्सम्बन्धी
परमाणुके एक प्रदेशीपनेका कथन
८०
कथन
६४
परमाणुद्रव्यमें गुण–पर्याय वर्तनेका
अन्य द्वारा किये बिना कर्म की उत्त्पत्ति
कथन
८१
किस प्रकार होती है उसका कथन
६५
सर्व पुद्गलभेदोंका उपसंहार
८२
कर्मोंकी विचित्रता अन्य द्वारा नहीं की
धर्मद्रव्यास्तिकाय और अधर्म–
जाती ––––तत्सम्बन्धी कथन
६६ द्रव्यास्तिकायका व्याख्यान
निश्चयसे जीव और कर्मको निज–निज
धर्मास्तिकायका स्वरूप
८३
रूपका ही कर्तापना होने पर भी,
धर्मास्तिकायका शेष स्वरूप
८४
व्यवहारसे जीवको कर्म द्वारा दिये गये
धर्मास्तिकायके गतिहेतुत्व सम्बन्धी
फल का उपभोग विरोधको प्राप्त नहीं
द्रष्टान्त
८५
होता––– तत्सम्बन्धी कथन
६७
अधर्मास्तिकायका स्वरूप
८६
कर्तृत्व और भोक्तृत्वकी व्याख्यान का
धर्म और अधर्मके सद्भावकी सिद्धिके
उपसंहार
६८
लिये हेतु
८७
कर्मसंयुक्तपने की मुख्यता से प्रभुत्वगुण
धर्म और अधर्म गति और स्थितिके
का व्याख्यान
६९
हेतु होने पर भी उनकी अत्यन्त
उदासीनता
८८