Panchastikay Sangrah (Hindi).

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विषय
गाथा
विषय
गाथा
जीवद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान
व्यपदेश आदि एकान्तसे द्रव्यगुणोंके
स्ांसारदशावाले आत्माका सौपाधि और
अन्यपनेका कारण होनेका खण्डन
४६
निरुपाधि स्वरूप
२७
वस्तुरूपसे भेद और [वस्तुरूपसे]
मुक्तदशावाले आत्माका निरुपाधि स्वरूप
२८
अभेदका उदाहरण
४७
सिद्धके निरुपाधि ज्ञान दर्शन और
द्रव्य और गुणोंका अर्थान्तरपना होनेसे
सुखका समर्थन
२९
दोष
४८
जीवत्वगुणकी व्याख्या
३०
ज्ञान और ज्ञानीको समवाय सम्बन्ध
जीवोंका स्वाभाविक प्रमाण तथा उनका
होंने का निराकरण
४९
मुक्त और अमुक्त ऐसा विभाग
३१–३२
समवायमे पदार्थनतरपना होंने का
जीवके देहप्रमाणपनेके द्रष्टान्तका कथन
३३
निराकरण
५०
जीवका देहसे देहान्तरमें अस्तित्व, देह
से पृथकत्व तथा देहान्तरमें गमन का
द्रष्टांतरूप तथा द्रार्ष्टांतरूप पदार्थ
पूर्वक, द्रव्य और गुणोंके अभिन्न–
कारण
३४
पदार्थपनेके व्याख्यानका उपसंहार
५१–५२
सिद्ध भगवन्तोंके जीवत्व एवं देह–
प्रमाणत्वकी व्यवस्था
३५
सिद्धभगवानको कार्यपना और
अपने भावोंको करते हुए, क्या जीव
कारणपना होनेका निराकरण
३६
अनादि अनन्त है? क्या सादि सान्त
‘जीवका अभाव सो मुक्ति’ –इस बात
है? क्या सादि अनंत है? क्या
का खण्डन
३७
तदाकाररूप परिणत है? क्या
चेतयितृत्व गुणकी व्याख्या
३८
तदाकाररूप अपरिणत है? ––इन
किस जीवको कौनसी चेतना होती है
आशंकाओंका समाधान
५३
उसका कथन
३९
जीवको भाववशात् सादि–सांतपना और
उपयोग गुणके व्याख्यानका प्रारम्भ
४०
अनादि–अनन्तपना होनेमें विरोधका
ज्ञानोपयोगके भेदोंके नाम और
परिहार
५४
स्वरूपका कथन
४१
जीवको सत्भावके उच्छेद और असत्–
दर्शनोपयोगके भेदोंके नाम और
भावके उत्पादमें निमित्तभूत उपाधि
स्वरूपका कथन
४२
का प्रतिपादन
५५
एक आत्मा अनेक ज्ञानात्मक होनेका
जीवोंको पाँच भावोंकी प्रगटताका वर्णन
५६
समर्थन
४३
जीवके औदयिकादि भावोंका अकर्तृत्व–
द्रव्यका गुणोंसे भिन्नत्व और गुणोंका
प्रकारका कथन
५७
द्रव्यसे भिन्नत्व होनेमें दोष
४४
निमित्तमात्ररूपसे द्रव्यकर्मोंका
द्रव्य और गुणोंका स्वोचित अनन्यपना
४५
औदयिकादि भावोंका कर्तापना
५८