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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
समाप्तं च मोक्षमार्गावयवरूपसम्यग्दर्शनज्ञानविषयभूतनवपदार्थव्याख्यानम्।।
अथ मोक्षमार्गप्रपञ्चसूचिका चूलिका।
जीवसहावं णाणं अप्पडिहददंसणं अणण्णमयं।
चरियं च तेसु णियदं अत्थित्तमणिंदियं भणियं।। १५४।।
और मोक्षमार्गके अवयवरूप सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञानके विषयभूत नव पदार्थोंका व्याख्यान भी
समाप्त हुआ।
जीवस्वभावं ज्ञानमप्रतिहतदर्शनमनन्यमयम्।
चारित्रं च तयोर्नियतमस्तित्वमनिन्दितं भणितम्।। १५४।।
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अब १मोक्षमार्गप्रपंचसूचक चूलिका है। ३
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१। मोक्षमार्गप्रपंचसूचक = मोक्षमार्गका विस्तार बतलानेवाली; मोक्षमार्गका विस्तारसे करनेवाली; मोक्षमार्गका
विस्तृत कथन करनेवाली।
२। चूलिकाके अर्थके लिए पृष्ठ १५१ का पदटिप्पण देखे।
आत्मस्वभाव अनन्यमय निर्विघ्न दर्शन ज्ञान छे;
द्रग्ज्ञाननियत अनिंध जे अस्तित्व ते चारित्र छे। १५४।