कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
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स्वसमयपरसमयोपादानव्युदासपुरस्सरकर्मक्षयद्वारेण जीवस्वभावनियतचरितस्य मोक्ष–
मार्गत्वद्योतनमेतत्।
संसारिणो हि जीवस्य ज्ञानदर्शनावस्थितत्वात् स्वभावनियतस्याप्यनादिमोहनीयो–
दयानुवृत्तिपरत्वेनोपरक्तोपयोगस्य सतः समुपात्तभाववैश्वरुप्यत्वादनियतगुणपर्यायत्वं परसमयः
परचरितमिति यावत्। तस्यैवानादिमोहनीयोदयानुवृत्तिपरत्वमपास्यात्यन्तशुद्धोपयोगस्य सतः
समुपात्तभावैक्यरुप्यत्वान्नियतगुणपर्यायत्वं स्वसमयः स्वचरितमिति यावत् अथ खलु यदि
कथञ्चनोद्भिन्नसम्यग्ज्ञानज्योतिर्जीवः परसमयं व्युदस्य स्वसमयमुपादत्ते तदा कर्मबन्धादवश्यं भ्रश्यति।
यतो हि जीवस्वभावनियतं चरितं मोक्षमार्ग इति।। १५५।।
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टीकाः– स्वसमयके ग्रहण और परसमयके त्यागपूर्वक कर्मक्षय होता है– ऐसे प्रतिपादन द्वारा
यहाँ [इस गाथामें] ‘जीवस्वभावमें नियत चारित्र वह मोक्षमार्ग है’ ऐसा दर्शाया है।
संसारी जीव, [द्रव्य–अपेक्षासे] ज्ञानदर्शनमें अवस्थित होनेके कारण स्वभावमें नियत
[–निश्चलरूपसे स्थित] होने पर भी जब अनादि मोहनीयके उदयका अनुसरण करके परिणति करने
के कारण उपरक्त उपयोगवाला [–अशुद्ध उपयोगवाला] होता है तब [स्वयं] भावोंका विश्वरूपपना
[–अनेकरूपपना] ग्रहण किया होनकेे कारण उसेे जो अनियतगुणपर्यायपना होता है वह परसमय
अर्थात् परचारित्र है; वही [जीव] जब अनादि मोहनीयके उदयका अनुसरण करने वाली परिणति
करना छोड़कर अत्यन्त शुद्ध उपयोगवाला होता है तब [स्वयं] भावका एकरूपपना ग्रहण किया
होनेके कारण उसे जो नियतगुणपर्यायपना होता है वह स्वसमय अर्थात् स्वचारित्र है।
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अब, वास्तवमें यदि किसी भी प्रकार सम्यग्ज्ञानज्योति प्रगट करके जीव परसमयको छोड़कर
स्वसमयको ग्रहण करता है तो कर्मबन्धसे अवश्य छूटता है; इसलिये वास्तवमें [ऐसा निश्चित होता
है कि] जीवस्वभावमें नियत चारित्र वह मोक्षमार्ग है।। १५५।।
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१। उपरक्त=उपरागयुक्त [किसी पदार्थमें होनेवाला। अन्य उपाधिके अनुरूप विकार [अर्थात् अन्य उपाधि जिसमें
निमित्तभूत होती है ऐसी औपाधिक विकृति–मलिनता–अशुद्धि] वह उपराग है।]
२। अनियत=अनिश्चित; अनेकरूप; विविध प्रकारके।
३। नियत=निश्चित; एकरूप; अमुक एक ही प्रकारके।