Panchastikay Sangrah (Hindi).

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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द

२२

द्विविधा हि सत्ता– महासत्ता–वान्तरसत्ता च। तत्र सवपदार्थसार्थव्यापिनी साद्रश्यास्तित्वसूचिका महासत्ता प्रोक्तैव। अन्या तु प्रतिनियतवस्तुवर्तिनी स्वरूपास्तित्वसूचिकाऽवान्तरसत्ता। तत्र महासत्ताऽवान्तरसत्तारूपेणाऽ–सत्ताऽवान्तरसत्ता च महासत्तारूपेणाऽसत्तेत्यसत्ता सत्तायाः। येन स्वरूपेणोत्त्पादस्तत्तथो–त्पादैकलक्षणमेव, येन स्वरूपेणोच्छेदस्तत्तथोच्छेुदैकलक्षणमेव, येन स्वरूपेण ध्रोव्यं तत्तथा ध्रौव्यैकलक्षणमेव, तत उत्पद्यमानोच्छिद्यमानावतिष्ठमानानां वस्तुनः स्वरूपाणां प्रत्येकं त्रैलक्षण्याभावादत्रिलक्षणत्वंः त्रिलक्षणायाः। एकस्य वस्तुनः स्वरूपसत्ता नान्यस्य वस्तुनः स्वरूपसत्ता भवतीत्यनेकत्वमेकस्याः। प्रतिनियतपदार्थस्थिताभिरेव सत्ताभिः पदार्थानां प्रतिनियमो -----------------------------------------------------------------------------

[उपर्युक्त सप्रतिपक्षपना स्पष्ट समझाया जाता हैः–] सत्ता द्विविध हैः महासत्ता और अवान्तरसत्ता । उनमें सर्व पदार्थसमूहमें व्याप्त होनेवाली, साद्रश्य अस्तित्वको सूचित करनेवाली महासत्ता [सामान्यसत्ता] तो कही जा चुकी है। दूसरी, प्रतिनिश्चित [–एक–एक निश्चित] वस्तुमें रहेनेवाली, स्वरूप–अस्तित्वको सूचित करनेवाली अवान्तरसत्ता [विशेषसत्ता] है। [१] वहाँ महासत्ता अवान्तरसत्तारूपसे असत्ता हैे और अवान्तरसत्ता महासत्तारूपसे असत्ता है इसलिये सत्ताको असत्ता है [अर्थात् जो सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होनेसे ‘सत्ता’ है वही अवान्तरसत्तारूप भी होनेसे ‘असत्ता’ भी है]। [२] जिस स्वरूपसे उत्पाद है उसका [–उस स्वरूपका] उसप्रकारसे उत्पाद एक ही लक्षण है, जिस स्वरूपसे व्यय हैे उसका [–उस स्वरूपका] उसप्रकारसे व्यय एक ही लक्षण है और जिस स्वरूपसे ध्रौव्य है उसका [–उस स्वरूपका] उसप्रकारसे ध्रौव्य एक ही लक्षण है इसलिये वस्तुके उत्पन्न होेनेवाले, नष्ट होेनेवाले और ध्रुव रहनेतवाले स्वरूपोंमेंसे प्रत्येकको त्रिलक्षणका अभाव होनेसे त्रिलक्षणा [सत्ता] को अत्रिलक्षणपना है। [अर्थात् जो सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होनेसे ‘त्रिलक्षणा’ है वही यहाँ कही हुई अवान्तरसत्तारूप भी होनेसे ‘अत्रिलक्षणा’ भी है]। [३] एक वस्तुकी स्वरूपसत्ता अन्य वस्तुकी स्वरूपसत्ता नहीं है इसलिये एक [सत्ता] को अनेकपना है। [अर्थात् जो सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होनेसे ‘एक’ है वही यहाँ कही हुई अवान्तरसत्तारूप भी होनेसे ‘अनेक’ भी है]। [४] प्रतिनिश्चित [व्यक्तिगत निश्चित] पदार्थमें स्थित सत्ताओं द्वारा ही पदार्थोंका प्रतिनिश्चितपना [–भिन्न–भिन्न निश्चित व्यक्तित्व] होता है इसलिये सर्वपदार्थस्थित [सत्ता] को एकपदार्थस्थितपना है। [अर्थात् जो सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होनेसे