Panchastikay Sangrah (Hindi).

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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द

४०

अत्र सदसतोरविनाशानुत्पादौ स्थितिपक्षत्वेनोपन्यस्तौ।

यदि हि जीवो य एव म्रियते स एव जायते, य एव जायते स एव म्रियते, तदैवं सतो विनाशोऽसत् उत्पादश्च नास्तीति व्यवतिष्ठते। यत्तु देवो जायते मनुष्यो म्रियते इति व्यपदिश्यते तदवधृतकालदेवमनुष्यत्वपर्यायनिर्वर्तकस्य देवमनुष्यगतिनाम्नस्तन्मात्रत्वादविरुद्धम्। यथा हि महतो वेणुदण्डस्यैकस्य क्रमवृत्तीन्यने कानि पर्वाण्यात्मीयात्मीयप्रमाणावच्छिन्नत्वात् पर्वान्तरमगच्छन्ति स्वस्थानेषु भावभाज्जि परस्थानेष्वभावभाज्जि भवन्ति, वेणुदण्डस्तु सर्वेष्वपि पर्वस्थानेषु भावभागपि पर्वान्तरसंबन्धेन पर्वान्तरसंबन्धाभावादभावभाग्भवति; तथा निरवधित्रि–कालावस्थायिनो जीवद्रव्यस्यैकस्य क्रमवृत्तयोऽनेकेः मनुष्यत्वादिपर्याया आत्मीयात्मीयप्रमाणा–वच्छिन्नत्वात् पर्यायान्तरमगच्छन्तः स्वस्थानेषु भावभाजः परस्थानेष्वभावभाजो भवन्ति, जीवद्रव्यं तु सर्वपर्यायस्थानेषु भावभागपि पर्यायान्तरसंबन्धेन पर्यायान्तरसंबन्धाभावादभावभाग्भवति।।१९।। -----------------------------------------------------------------------------

टीकाः– यहाँ सत्का अविनाश और असत्का अनुत्पाद ध्रुवताके पक्षसे कहा है [अर्थात् ध्रुवताकी अपेक्षासे सत्का विनाश या असत्का उत्पाद नहीं होता–– ऐसा इस गाथामें कहा है]।

यदि वास्तवमें जो जीव मरता है वही जन्मता है, जो जीव जन्मता है वही मरता है, तो इसप्रकार सत्का विनाश और असत्का उत्पाद नहीं है ऐसा निश्चित होता है। और ‘देव जन्मता हैे और मनुष्य मरता है’ ऐसा जो कहा जाता है वह [भी] अविरुद्ध है क्योंकि मर्यादित कालकी देवत्वपर्याय और मनुष्यत्वपर्यायको रचने वाले देवगतिनामकर्म और मनुष्यगतिनामकर्म मात्र उतने काल जितने ही होते हैं। जिसप्रकार एक बडे़ बाँसके क्र्रमवर्ती अनेक पर्व अपने–अपने मापमें मर्यादित होनेसे अन्य पर्वमें न जाते हुए अपने–अपने स्थानोंमें भाववाले [–विद्यमान] हैं और पर स्थानोंमें अभाववाले [–अविद्यमान] हैं तथा बाँस तो समस्त पर्वस्थानोंमें भाववाला होनेपर भी अन्य पर्वके सम्बन्ध द्वारा अन्य पर्वके सम्बन्धका अभाव होनेसे अभाववाला [भी] है; उसीप्रकार निरवधि त्रिकाल स्थित रहनेवाले एक जीवद्रव्यकी क्रमवर्ती अनेक मनुष्यत्वादिपर्याय अपने–अपने मापमें मर्यादित होनेसे अन्य पर्यायमें न जाती हुई अपने–अपने स्थानोंमें भाववाली हैं और पर स्थानोंमें अभाववाली हैं तथा जीवद्रव्य तो सर्वपर्यायस्थानोमें भाववाला होने पर भी अन्य पर्यायके सम्बन्ध द्वारा अन्य पर्यायके सम्बन्धका अभाव होनेसे अभाववाला [भी] है। --------------------------------------------------------------------------

१। पर्व=एक गांठसे दूसरी गांठ तकका भाग; पोर।