५४
] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
इति समयव्याख्यायामन्तनींतषड्द्रव्यपञ्चास्तिकायसामान्यव्याख्यानरूपः पीठबंधः समाप्तः।।
अथामीषामेव विशेषव्याख्यानम्। तत्र तावत् जीवद्रव्यास्तिकायव्याख्यानम्।
जीवो त्ति हवदि चेदा उवओगविसेसिदो पहू कत्ता।
भोत्ता य देहमेत्तो ण हि
मुत्तो कम्मसंजुत्तो।। २७।।
जीव इति भवति चेतयितोपयोगविशेषितः प्रभुः कर्ता।
भोक्ता च देहमात्रो न हि मूर्तः कर्मसंयुक्तः।। २७।।
अत्र संसारावस्थस्यात्मनः सोपाधि निरुपाधि च स्वरूपमुक्तम्।
आत्मा हि निश्चयेन भावप्राणधारणाज्जीवः, व्यवहारेण द्रव्यप्राणधारणाज्जीवः। निश्चयेन
-----------------------------------------------------------------------------
इस प्रकार [श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत श्री पंचास्तिकायसंग्रह शास्त्रकी श्री
अमृतचंद्राचार्यदेवविरचित] समयव्याख्या नामकी टीकामें षड्द्रव्य–पंचास्तिकायके सामान्य व्याख्यानरूप
पीठिका समाप्त हुई।
अब उन्हींका [–षड्द्रव्य और पंचास्तिकायका ही] विशेष व्याख्यान किया जाता है। उसमें
प्रथम, जीवद्रव्यास्तिकायके व्याख्यान हैं।
गाथा २७
अन्वयार्थः– [जीवः इति भवति] [संसारस्थित] आत्मा जीव है, [चेतयिता] चेतयिता
[चेतनेवाला] है, [उपयोगविशेषितः] उपयोगलक्षित है, [प्रभुः] प्रभु है, [कर्ता] कर्ता हैे, [भोक्ता]
भोक्ता है, [देहमात्रः] देहप्रमाण है, [न हि मूर्तः] अमूर्त है [च] और [कर्मसंयुक्तः] कर्मसंयुक्त है।
टीकाः– यहाँ [इस गाथामें] संसार–दशावाले आत्माका सोपाधि और निरुपाधि स्वरूप कहा
है।
आत्मा निश्चयसे भावप्राणको धारण करता है इसलिये ‘जीव’ है, व्यवहारसे [असद्भूत
व्यवहारनयसे] द्रव्यप्राणको धारण करता है इसलिये ‘जीव’ है; २निश्चयसे चित्स्वरूप होनेके कारण
‘चेतयिता’ [चेतनेवाला] है, व्यवहारसे [सद्भूत व्यवहारनयसे] चित्शक्तियुक्त होनेसे ‘चेतयिता’
--------------------------------------------------------------------------
१। सोपाधि = उपाधि सहित; जिसमें परकी अपेक्षा आती हो ऐसा।
२। निश्चयसे चित्शक्तिको आत्माके साथ अभेद है और व्यवहारसे भेद है; इसलिये निश्चयसे आत्मा चित्शक्तिस्वरूप
है और व्यवहारसे चित्शक्तिवान है।
छे जीव, चेतयिता, प्रभु, उपयोगचिह्न, अमूर्त छे,
कर्ता अने भोक्ता, शरीरप्रमाण, कर्मे युक्त छे। २७।