Panchastikay Sangrah (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य–पंचास्तिकायवर्णन
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चिदात्मकत्वात्, व्यवहारेण चिच्छक्तियुक्तत्वाच्चेतयिता। निश्चयेनापृथग्भूतेन, व्यवहारेण पृथग्भूतेन
चैतन्यपरिणामलक्षणेनोपयोगेनोपलक्षितत्वादुपयोगविशेषितः।
निश्चयेन भावकर्मणां, व्यवहारेण
द्रव्यकर्मणामास्रवणबंधनसंवरणनिर्जरणमोक्षणेषु स्वयमीशत्वात् प्रभुः। निश्चयेन
पौद्गलिककर्मनिमित्तात्मपरिणामानां, व्यवहारेणात्मपरिणामनिमित्तपौद्गलिककर्मणां कर्तृत्वात्कर्ता।
निश्चयेनशुभाशुभकर्मनिमित्तसुखदुःखपरिणामानां, व्यवहारेण शुभाशुभकर्मसंपादि–तेष्टानिष्टविषयाणां
भोक्तृत्वाद्भोक्ता। निश्चयेन लोकमात्रोऽपि विशिष्टावगाहपरिणामशक्तियुक्त–त्वान्नामकर्मनिर्वृत्तमणु महच्च
शरीरमधितिष्ठन् व्यवहारेण देहमात्रः। व्यवहारेण कर्मभिः सहैकत्वपरिणामान्मूर्तोऽपि निश्चयेन
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है; निश्चयसे अपृथग्भूत ऐसे चैतन्यपरिणामस्वरूप उपयोग द्वारा लक्षित होनेसे ‘उपयोगलक्षित’ है,
व्यवहारसे [सद्भूत व्यवहारनयसे] पृथग्भूत ऐसे चैतन्यपरिणामस्वरूप उपयोग द्वारा लक्षित होनेसे
‘उपयोगलक्षित’ है; निश्चयसे भावकर्मोंके आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष करनेमें स्वयं ईश
[समर्थ] होनेसे ‘प्रभु’ है, व्यवहारसे [असद्भूत व्यवहारनयसे] द्रव्यकर्मोंके आस्रव, बंध, संवर,
निर्जरा और मोक्ष करनेमें स्वयं ईश होनेसे ‘प्रभु’ है; निश्चयसे पौद्गलिक कर्म जिनका निमित्त है
ऐसे आत्मपरिणामोंका कर्तृत्व होनेसे ‘कर्ता’ है, व्यवहारसे [असद्भूत व्यवहारनयसे] आत्मपरिणाम
जिनका निमित्त है ऐसे पौद्गलिक कर्मोंका कर्तृत्व होनेसे ‘कर्ता’ है; निश्चयसे शुभाशुभ कर्म
जिनका निमित्त है ऐसे सुखदुःखपरिणामोंका भोक्तृत्व होनेसे ‘भोक्ता’ है, व्यवहारसे [असद्भूत
व्यवहारनयसे] शुभाशुभ कर्मोंसे संपादित [प्राप्त] इष्टानिष्ट विषयोंका भोक्तृत्व होनेसे ‘भोक्ता’ है;
निश्चयसे लोकप्रमाण होने पर भी, विशिष्ट अवगाहपरिणामकी शक्तिवाला होनेसे नामकर्मसे रचित
छोटे–बड़े शरीरमें रहता हुआ व्यवहारसे [सद्भूत व्यवहारनयसे] ‘देहप्रमाण’ है; व्यवहारसे
[असद्भूत व्यवहारनयसे] कर्मोंके साथ एकत्वपरिणामके कारण मूर्त होने पर भी, निश्चयसे अरूपी–
स्वभाववाला होनेके कारण ‘अमूर्त’ है;
निश्चयसे पुद्गलपरिणामको अनुरूप चैतन्यपरिणामात्मक
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१। अपृथग्भूत = अपृथक्; अभिन्न। [निश्चयसे उपयोग आत्मासे अपृथक् है और व्यवहारसे पृथक् है।]
२। संसारी आत्मा निश्चयसे निमित्तभूत पुद्गलकर्मोंको अनुरूप ऐसे नैमित्तिक आत्म परिणामोंके साथ [अर्थात्
भावकर्मोंके साथ] संयुक्त होनेसे कर्मसंयुक्त है और व्यवहारसे निमित्तभूत आत्मपरिणामोंको अनुरूप ऐसें
नैमित्तिक पुद्गलकर्मोंके साथ [अर्थात् द्रव्यकर्मोंके साथ] संयुक्त होनेसे कर्मसंयुक्त है।