Parmatma Prakash (Gujarati Hindi). Gatha: 97 (Adhikar 1).

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૧૬૦ ]
યોગીન્દુદેવવિરચિતઃ
[ અધિકાર-૧ઃ દોહા-૯૭
अथ निर्मलमात्मानं ध्यायस्व येन ध्यातेनान्तर्मुहूर्तेनैव मोक्षपदं लभ्यत इति
निरूपयति
९७) अप्पा झायहि णिम्मलउ किं बहुएँ अण्णेण
जो झायंतहँ परम-पउ लब्भइ एक्क-खणेण ।।९७।।
आत्मानं ध्यायस्व निर्मलं किं बहुना अन्येन
यं ध्यायमानानां परमपदं लभ्यते एकक्षणेन ।।९७।।
अप्पा झायहि णिम्मलउ आत्मानं ध्यायस्व कथंभूतं निर्मलम् किं बहुएं अण्णेण
किं बहुनान्येन शुद्धात्मबहिर्भूतेन रागादिविकल्पजालमालाप्रपञ्चेन जो झायंतहं परमपउ
आत्मामें निश्चल होना वह सम्यक्चारित्र है, यह निश्चयरत्नत्रय साक्षात् मोक्षका कारण है, इनसे
बंध कैसे हो सकता है ? कभी नहीं हो सकता
।।९६।।
आगे ऐसा कहते हैं, कि निर्मल आत्माको ही ध्यावो, जिसके ध्यान करनेसे अंतर्मुहूर्तमें
(तात्काल) मोक्षपदकी प्राप्ति हो
गाथा९७
अन्वयार्थ :हे योगी तू [निर्मलं आत्मानं ] निर्मल आत्माका ही [ध्यायस्व ] ध्यान
कर, [अन्येन बहुना किं ] और बहुत पदार्थोंसे क्या देश काल पदार्थ आत्मासे भिन्न हैं, उनसे
कुछ प्रयोजन नहीं है, रागादि-विकल्पजालके समूहोंके प्रपंचसे क्या फायदा, एक निज
स्वरूपको ध्यावो, [यं ] जिस परमात्माके [ध्यायमानानां ] ध्यान करनेवालोंको [एकक्षणेन ]
क्षणमात्रमें [परमपदं ] मोक्षपद [लभ्यते ] मिलता है
भावार्थ :सब शुभाशुभ संकल्प-विकल्प रहित निजशुद्ध आत्मस्वरूपके ध्यान
करनेसे शीघ्र ही मोक्ष मिलता है, इसलिये वही हमेशा ध्यान करने योग्य है ऐसा ही
થવું તે સમ્યગ્ચારિત્ર છે. જ્યારે આ ત્રણેય ગુણ આત્મસ્વરૂપ છે તો એનાથી કર્મોનો બંધ કેવી
રીતે થઈ શકે? (અર્થાત્ થઈ શકતો નથી, તે નિશ્ચયરત્નત્રય સાક્ષાત્ મોક્ષનું કારણ છે.) ૯૬.
હવે, કહે છે કે તું નિર્મળ આત્માનું ધ્યાન કર કે જેનું ધ્યાન કરવાથી તું અંતર્મુહૂર્તમાં
જ મોક્ષપદ પામીશઃ
ભાવાર્થ
સમસ્ત શુભાશુભ સંકલ્પવિકલ્પરહિત સ્વશુદ્ધાત્મતત્ત્વના ધ્યાનથી