Parmatma Prakash (Gujarati Hindi).

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दुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मसंस्काराभिधानानां नवानां गुणानामभावं मोक्षं मन्यन्ते ये
वृद्धवैशेषिकास्ते निषिद्धाः
ये च प्रदीपनिर्वाणवज्जीवाभावं मोक्षं मन्यते सोगतास्ते च निरस्ताः
यच्चोक्त सांख्यैः सुप्तावस्थावत् सुखज्ञानरहितो मोक्षस्तदपि निरस्तम् लोकाग्रे तिष्ठतीति वचनेन
तु मण्डिकसंज्ञा नैयायिकमतान्तर्गता यत्रैव मुक्त स्तत्रैव तिष्ठतीति वदन्ति तेऽपि निरस्ता इति
जैनमते पुनरिन्द्रियजनितज्ञानसुखस्याभावे न चातीन्द्रियज्ञानसुखस्येति कर्मजनितेन्द्रियादिदश-
इन नव गुणोंके अभावरूप मोक्ष है, उनका निषेध किया, क्योंकि इंद्रियजनित बुद्धिका तो
अभाव है, परंतु केवल बुद्धि अर्थात् केवलज्ञानका अभाव नहीं है, इंद्रियोंसे उत्पन्न सुखका
अभाव है, लेकिन अतीन्द्रिय सुखकी पूर्णता है, दुःख, इच्छा, द्वेष, यत्न इन विभावरूप गुणोंका
तो अभाव ही है, केवलरूप परिणमन है, व्यवहार
धर्मका अभाव ही है, और वस्तुका
स्वभावरूप धर्म वह ही है, अधर्मका तो अभाव ठीक ही है, और परद्रव्यरूपसंस्कार सर्वथा
नहीं है, स्वभावसंस्कार ही है जो मूढ़ इन गुणोंका अभाव मानते हैं, वे वृथा बकते हैं, मोक्ष
तो अनंत गुणरूप है इस तरह निर्गुणवादियोंका निषेध किया तथा बौद्धमती जीवके
अभावको मोक्ष कहते हैं वे मोक्ष ऐसा मानते हैं कि जैसे दीपकका निर्वाण (बुझना) उसी
तरह जीवका अभाव वही मोक्ष है ऐसी बौद्धकी श्रद्धाका भी तिरस्कार किया क्योंकि जो
जीवका ही अभाव हो गया, तो मोक्ष किसको हुआ ? जीवका शुद्ध होना वह मोक्ष है, अभाव
कहना वृथा है
सांख्यदर्शनवाले ऐसा कहते हैं कि जो एकदम सोनेकी अवस्था है, वही मोक्ष
है, जिस जगह न सुख है, न ज्ञान है, ऐसी प्रतीतिका निवारण किया नैयायिक ऐसा कहते
हैं कि जहाँसे मुक्त हुआ वहीं पर ही तिष्ठता है, ऊ परको गमन नहीं करता ऐसे नैयायिकके
कथनका लोकशिखर पर तिष्ठता है, इस वचनसे निषेध किया जहाँ बंधनसे छूटता है, वहाँ
वह नहीं रहता, यह प्रत्यक्ष देखने में आता है, जैसे कैदी कैदसे जब छूटता है, तब बंदीगृहसे
छूटकर अपने घरकी तरफ गमन करता है, वह निजघर निर्वाण ही है
जैनमार्गमें तो
(૨)જેમ દીવાનું બુઝાવું તે નિર્વાણ છે તેમ જીવનો અભાવ તે મોક્ષ છે તેમ બૌદ્ધો માને
છે, તેનું ખંડન કરવામાં આવ્યું છે.
(૩)સાંખ્યદર્શનવાળા એમ કહે છે કે સુપ્ત-અવસ્થાની સમાન સુખ જ્ઞાનથી રહિત તે મોક્ષ
છે, તેનું પણ ખંડન કર્યું છે.
(૪)‘લોકાગ્રે રહે છે’ એ વચન વડે ‘જીવ જ્યાં મુક્ત થાય છે ત્યાં જ રહે છે’ એમ મંડિક
નામના નૈયાયિકો કહે છે, તેમનું પણ ખંડન થયું.
વળી, જૈનમતમાં તો (મોક્ષમાં) ઇન્દ્રિયજનિત જ્ઞાન અને સુખનો અભાવ થતાં કાંઈ
અતીન્દ્રિયજ્ઞાન અને અતીન્દ્રિયસુખનો અભાવ થતો નથી, અને કર્મજનિત ઇન્દ્રિયાદિ દશ પ્રાણ-
અધિકાર-૨ઃ દોહા-૬ ]પરમાત્મપ્રકાશઃ [ ૨૦૯