Parmatma Prakash (Gujarati Hindi). Gatha: 56 (Adhikar 2).

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१८३) वर जिय पावइँ सुंदरइँ णाणिय ताइँ भणंति
जीवहँ दुक्खइँ जणिवि लहु सिवमइँ जाइँ कुणंति ।।५६।।
वरं जीव पापानि सुन्दराणि ज्ञानिनः तानि भणन्ति
जीवानां दुःखानि जनित्वा लघु शिवमतिं यानि कुर्वन्ति ।।५६।।
वर जिय इत्यादि वर जिय वरं किंतु हे जीव पावइं सुंदरइं पापानि सुन्दराणि
समीचीनानि भणंति कथयन्ति के णाणिय ज्ञानिनः तत्त्ववेदिनः कानि ताइं तानि
पूर्वोक्तानि पापानि कथंभूतानि जीवहं दुक्खइं जणिवि लहु सिवमइं जाइं कुणंति जीवानां
दुःखानि जनित्वा लघु शीघ्रं शीवमतिं मुक्ति योग्यमतिं यानि कुर्वन्ति अयमत्राभिप्रायः अत्र
भेदाभेदरत्नत्रयात्मकं श्रीधर्मं लभते जीवस्तत्पापजनितदुःखमपि श्रेष्ठमिति कस्मादिति चेत्
ભાવાર્થઃજ્યાં (પાપના ફળરૂપ દુઃખના ડરથી) જીવ ભેદાભેદ-રત્નત્રયાત્મક શ્રીધર્મને
૩૧૨ ]
યોગીન્દુદેવવિરચિતઃ
[ અધિકાર-૨ઃ દોહા-૫૬
गाथा५६
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव, [यानि ] जो पापके उदय [जीवानां ] जीवोंको
[दुःखानि जनित्वा ] दुःख देकर [लघु ] शीघ्र ही [शिवमतिं ] मोक्षके जाने योग्य उपायोंमें
बुद्धि [कुर्वन्ति ] कर देवे, तो [तानि पापानि ] वे पाप भी [वरं सुंदराणि ] बहुत अच्छे हैं,
ऐसा [ज्ञानिनः ] ज्ञानी [भणंति ] कहते हैं
भावार्थ :कोई जीव पाप करके नरकमें गया, वहाँ पर महान दुःख भोगे, उससे
कोई समय किसी जीवके सम्यक्त्वकी प्राप्ति हो जाती है क्योंकि उस जगह सम्यक्त्वकी
प्राप्तिके तीन कारण हैं पहला तो यह है, कि तीसरे नरक तक देवता उसे संबोधनेको (चेतावने
को) जाते हैं, सो कभी कोई जीवके धर्म सुननेसे सम्यक्त्व उत्पन्न हो जावे, दूसरा कारण
पूर्वभवका स्मरण और तीसरा नरककी पीड़ाकरि दुःखी हुआ, नरकको महान् दुःखका स्थान
जान नरकके कारण जो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह और आरंभादिक हैं, उनको खराब
जानके पापसे उदास होवे
तीसरे नरक तक ये तीन कारण हैं आगेके चौथे, पाँचवें, छठें,
सातवें नरकमें देवोंका गमन न होनेसे धर्मश्रवण तो है नहीं, लेकिन जातिस्मरण है, तथा
वेदनाकर दुःखी होके पापसे भयभीत होनाये दो ही कारण हैं इन कारणोंको पाकर किसी
जीवके सम्यक्त्व उत्पन्न हो सकता है इस नयसे कोई भव्यजीव पापके उदयसे खोटी गतिमें
गया, और वहाँ जाकर यदि सुलट जावे, तथा सम्यक्त्व पावे, तो वह कुगति भी बहुत श्रेष्ठ
है
यही श्रीयोगिन्द्राचार्यने मूलमें कहा हैजो पाप जीवोंको दुःख प्राप्त कराके फि र शीघ्र ही