Parmatma Prakash (Gujarati Hindi). Gatha: 120 (Adhikar 2).

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૪૧૬ ]
યોગીન્દુદેવવિરચિતઃ
[ અધિકાર-૨ઃ દોહા-૧૨૦
કરે છે, એમ શિક્ષા (શિખામણ) આપે છેઃ
ભાવાર્થઅહીં આ વ્યાખ્યાન જાણીને કર્મોના આશ્રયથી પ્રતિપક્ષભૂત રાગાદિ
વિકલ્પોથી રહિત નિજશુદ્ધાત્માની ભાવના કરવી. ૧૨૦.
२५०) जिय अणु-मित्तु वि दुक्खडा सहण ण सक्कहि जोइ
चउ-गइ-दुक्खहँ कारणइँ कम्मइँ कुणहि किं तोइ ।।१२०।।
जीव अणुमात्राण्यपि दुःखानि सोढुं न शक्नोषि पश्य
चतुर्गतिदुःखानां कारणानि कर्माणि करोषि किं तथापि ।।१२०।।
जिय इत्यादि जिय हे मूढजीव अणु-मित्तवि अणुमात्राण्यपि कानि दुक्खडा
दुःखानि सहण ण सक्कहि सोढुं न शक्नोषि जोइ पश्य यद्यपि चउगइदुक्खहं कारणइ
परमात्मभावनोत्पन्नतात्त्विकवीतरागनित्यानन्दैकविलक्षणानां नारकादिदुःखानां कारणभूतानि कम्मइं
कुणहि किं कर्माणि करोषि किमर्थं तोइ यद्यपि दुःखानीष्टानि न भवन्ति तथापि इति
अत्रेदं
व्याख्यानं ज्ञात्वा कर्मास्रवप्रतिपक्षभूतरागादिविकल्परहिता निजशुद्धात्मभावना कर्तव्येति
तात्पर्यम्
।।१२०।।
अनंतकाल तक दुःख तू भोगे, ऐसी शिक्षा देते हैं
गाथा१२०
अन्वयार्थ :[जीव ] हे मूढ़जीव, तू [अणुमात्राण्यपि ] परमाणुमात्र (थोड़े) भी
[दुःखानि ] दुःख [सोढुं ] सहनेको [न शक्नोषि ] नहीं समर्थ है, [पश्य ] देख [तथापि ]
तो फि र [चतुर्गतिदुःखानां ] चार गतियोंके दुःखके [कारणानि कर्माणि ] कारण जो कर्म हैं,
[किं करोषि ] उनको क्यों करता है
?
भावार्थ :परमात्माकी भावनासे उत्पन्न तत्त्वरूप वीतराग नित्यानंद एक परम
स्वभाव उससे भिन्न जो नरकादिकके दुःख उनके कारण कर्म ही हैं जो दुःख तुझे
अच्छे नहीं लगते, दुःखोंको अनिष्ट जानता है, तो दुःखके कारण कर्मोंको क्यों उपार्जन
करता है ? मत कर
यहाँ पर ऐसा व्याख्यान जानकर कर्मोंके आस्रवसे रहित तथा
रागादि विकल्पजालोंसे रहित जो निज शुद्धात्माकी भावना वही करनी चाहिए, ऐसा
तात्पर्य जानना ।।१२०।।