Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
দ্রব্যগুণপর্যাযনা স্বরূপনা কথননী মুখ্যতাথী ‘‘अप्पा जणियउ’’ ইত্যাদি ত্রণ সূত্রো ছে,
(৮) ত্যারপছী কর্মবিচারনী মুখ্যতাথী ‘‘जीवहं कम्मु अणाई जिय’’ ইত্যাদি আঠ সূত্রো ছে,
(৯) ত্যারপছী সামান্য ভেদভাবনানা কথনথী ‘‘अप्पा अप्पु जि’’ ইত্যাদি নব সূত্রো ছে,
(১০) ত্যারপছী নিশ্চয সম্যগ্দ্রষ্টিনা কথনরূপথী ‘‘अप्पिं अप्पु’’ ইত্যাদি এক সূত্র ছে,
(১১) ত্যারপছী মিথ্যাভাবনা কথননী মুখ্যতাথী ‘‘पज्जयरत्तउ’’ ইত্যাদি আঠ সূত্রো ছে,
(১২) ত্যারপছী সম্যগ্দ্রষ্টিনী ভাবনানী মুখ্যতাথী ‘‘कालु लहेविणु’’ ইত্যাদি আঠ সূত্রো ছে,
(১৩) ত্যারপছী সামান্য ভেদ ভাবনানী মুখ্যতাথী ‘‘अप्पा संजमु’’ ইত্যাদি একত্রীশ জেটলা
দোহক সূত্রো ছে.
এ প্রমাণে শ্রীযোগীন্দ্রদেববিরচিত পরমাত্মপ্রকাশ শাস্ত্রমাং একসোত্রেবীস দোহকসূত্রোথী
বহিরাত্মা, অন্তরাত্মা অনে পরমাত্মানা স্বরূপনা কথননী মুখ্যতাথী প্রথম প্রকরণ-পাতনিকা
পূরী থঈ. (অনে তেমাং তের অন্তরাধিকার ছে)
तदनन्तरं द्रव्यगुणपर्यायस्वरूपकथनमुख्यतया ‘अप्पा जणियउ’ इत्यादि सूत्रत्रयम्, अथानन्तरं
कर्मविचारमुख्यत्वेन
‘जीवहं कम्मु अणाइ जिय’ इत्यादि सूत्राष्टकं, तदनन्तरं सामान्य-
भेदभावनाकथनेन
‘अप्पा अप्पु जि’ इत्यादि सूत्रनवकम्, अत ऊर्ध्वं निश्चय-
सम्यग्
द्रष्टिकथनरूपेण ‘अप्पिं अप्पु’ इत्यादि सूत्रमेकं, तदनन्तरं मिथ्याभावकथनमुख्यत्वेन
‘पज्जयरत्तउ’ इत्यादि सूत्राष्टकम्, अत ऊर्ध्वं सम्यग्द्रष्टिभावनामुख्यत्वे ‘कालु लहेविणु’
इत्यादिसूत्राष्टकं, तदनन्तरं सामान्यभेदभावनामुख्यत्वेन ‘अप्पा संजमु’ इत्याद्येकाधिक-
त्रिंशत्प्रमितानि दोहकसूत्राणि भवन्ति
।। इति श्रीयोगीन्द्रदेवविरचितपरमात्मप्रकाशशास्त्रे
त्रयोविंशत्यधिकशतदोहकसूत्रैर्बहिरन्तःपरमात्मस्वरूपकथनमुख्यत्वेन प्रथमप्रकरणपातनिका
समाप्ता
अथानन्तरं द्वितीयमहाधिकारप्रारम्भे मोक्षमोक्षफ लमोक्षमार्गस्वरूपं कथ्यते तत्र
পাতনিকা ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩
इत्यादि छह दोहे, द्रव्य गुण पर्यायके स्वरूप कहनेकी मुख्यताकर ‘अप्पा जणियउ’ इत्यादि तीन
दोहे, कर्म-विचारकी मुख्यताकर ‘जीवहं कम्मु अणाइ जिय’ इत्यादि आठ दोहे, सामान्य भेद
भावनाके कथन कर ‘अप्पा अप्पु जि’ इत्यादि नौ दोहे, निश्चयसम्यग्दृष्टिके कथनरूप ‘अप्पे अप्पु
जि’
इत्यादि एक दोहा, मिथ्याभावके कथनकी मुख्यताकर ‘पज्जयरत्तउ’ इत्यादि आठ दोहे,
सम्यग्दृष्टिकी मुख्यता कर ‘कालु लहेविणु’ इत्यादि आठ दोहे और सामान्यभेदभावकी मुख्यताकर
‘अप्पा संजमु’
इत्यादि इकतीस दोहे कहे हैं इस तरह श्रीयोगीन्द्रदेवविरचित परमात्मप्रकाश ग्रंथमें
१२३ दोहों का पहला प्रकरण कहा है, इस प्रकरणमें बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्माके स्वरूपके
कथनकी मुख्यता है, तथा इसमें तेरह अंतर अधिकार हैं
अब दूसरे अधिकारमें मोक्ष, मोक्षफ ल