Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৩৫০ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-৮০
वीतरागपरमाह्लादरूपशुद्धात्मानुभूतिविपरीतं निजोपार्जितं शुभाशुभकर्मफ लं मोहइं निर्मोह-
शुद्धात्मप्रतिकूलमोहोदयेन जो जि करेइ य एव पुरुषः करोति । कम् । भाउ भावं
परिणामम् । किंविशिष्टम् । असुंदरु सुंदरु वि अशुभं शुभमपि सो पर स एव भावः
कम्मु जणेइ शुभाशुभं कर्म जनयति । अयमत्र भावार्थ । उदयागते कर्मणि योऽसौ
स्वस्वभावच्युतः सन् रागद्वेषौ करोति स एवः कर्म बध्नाति ।।७९।।
अथ उदयागतेकर्मानुभवे योऽसौ रागद्वेषौ न करोति स कर्म न बध्नातीति कथयति —
२०७) भुंजंतु वि णिय-कम्म-फ लु जो तहिँ राउ ण जाइ ।
सो णवि बंधइ कम्मु पुणु संचिउ जेण विलाइ ।।८०।।
भुञ्जानोऽपि निजकर्मफ लं यः तत्र रागं न याति ।
स नैव बध्नाति कर्म पुनः संचितं येन विलीयते ।।८०।।
ভাবার্থ: — জে পুরুষ বীতরাগ পরম আহ্লাদরূপ শুদ্ধ আত্মানী অনুভূতিথী
বিপরীত স্বোপার্জিত (পোতে উপার্জিত করেলা) শুভাশুভকর্মনা ফলনে ভোগবতো থকো পণ
নির্মোহ এবা শুদ্ধ আত্মাথী প্রতিকূল মোহোদযথী শুভ-অশুভ (সারা-নরসা) পরিণামনে করে
ছে তে জ (তে ভাব জ) শুভাশুভ কর্ম উপজাবে ছে.
অহীং, এ ভাবার্থ ছে কে জে কোঈ স্বভাবভাবথী চ্যুত থতো উদযাগত কর্মমাং রাগ
-দ্বেষ করে ছে তে জ কর্ম বাংধে ছে. ৭৯.
হবে, উদযমাং আবেলা কর্মনা অনুভবমাং জে রাগ-দ্বেষ করতো নথী তে কর্ম বাংধতো
নথী, এম কহে ছে : —
रागादिक विभाव उनसे उपार्जन किये गये शुभ-अशुभ कर्म उनके फ लको भोगता हुआ जो
अज्ञानी जीव मोहके उदयसे हर्ष-विषाद भाव करता है, वह नये कर्मोंका बंध करता है । सारांश
यह है कि, जो निज स्वभावसे च्युत हुआ उदयमें आये हुए कर्मोंमें राग द्वेष करता है, वही
कर्मोंको बाँधता है ।।७९।।
आगे जो उदय प्राप्त कर्मोंमें राग-द्वेष नहीं करता, वह कर्मोंको भी नहीं बाँधता, ऐसा
कहते हैं —
गाथा – ८०
अन्वयार्थ : — [निजकर्मफ लं ] अपने बाँधे हुए कर्मोंके फ लको [भुंजानोऽपि ] भोगता