Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-৮০ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৫১
भुंजंतु वि इत्यादि भुंजंतु वि भुञ्जानोऽपि किम् णिय-कम्म-फ लु निजकर्मफ लं
निजशुद्धात्मोपलम्भाभावेनोपार्जितं पूर्वं यत् शुभाशुभं कर्म तस्य फ लं जो यो जीवः तहिँ
तत्र कर्मानुभवप्रस्तावे राउ ण जाइ रागं न गच्छति वीतरागचिदानन्दैकस्वभावशुद्धात्मतत्त्व-
भावनोत्पन्नसुखामृततृप्तः सन् रागद्वेषौ न करोति
सो स जीवः णवि बंधइ नैव बध्नाति
किं न बध्नाति कम्मु ज्ञानावरणादि कर्म पुणु पुनरपि येन कर्मबन्धाभावपरिणामेन किं
भवति संचिउ जेण विलाइ पूर्वसंचितं कर्म येन वीतरागपरिणामेन विलयं विनाशं
गच्छतीति अत्राह प्रभाकरभट्टः कर्मोदयफ लं भुञ्जानोऽपि ज्ञानी कर्मणापि न बध्यते
इति सांख्यादयोऽपि वदन्ति तेषां किमिति दूषणं दीयते भवद्भिरिति भगवानाह ते
ভাবার্থ :নিজকর্মফলনে-নিজশুদ্ধাত্মানী প্রাপ্তিনা অভাবথী পূর্বে উপার্জেল
শুভাশুভ কর্মনা ফলনে-ভোগবতো থকো পণ জে জীব কর্মনা অনুভবমাং রাগনে প্রাপ্ত
থতো নথী-বীতরাগ চিদানংদ জ জেনো এক স্বভাব ছে এবা শুদ্ধাত্মতত্ত্বনী ভাবনাথী
উত্পন্ন
সুখামৃতথী তৃপ্ত থতো রাগ-দ্বেষ করতো নথীতে জীব ফরী জ্ঞানাবরণাদি কর্ম
বাংধতো নথী, জে কর্মনা অভাবপরিণামথীবীতরাগ পরিণামথীপূর্বনা সংচিত কর্ম
নাশ পামে ছে.
আবুং কথন সাংভলীনে প্রভাকরভট্ট পূছে ছে কে‘ হে প্রভু! কর্মোদযনা ফলনে
ভোগবতো থকো জ্ঞানী কর্মথী পণ বংধাতো নথী’ এম সাংখ্যাদিও পণ কহে ছে তো
আপ তেমনে শা মাটে দোষ আপো ছো?
हुआ भी [तत्र ] उस फ लके भोगनेमें [यः ] जो जीव [रागं ] राग-द्वेषको [न याति ] नहीं प्राप्त
होता [सः ] वह [पुनः कर्म ] फि र कर्मको [नैव ] नहीं [बध्नाति ] बाँधता, [येन ] जिस
कर्मबंधाभाव परिणामसे [संचितं ] पहले बाँधे हुए कर्म भी [विलीयते ] नाश हो जाते हैं
भावार्थ :निज शुद्धात्माके ज्ञानके अभावसे उपार्जन किये जो शुभ-अशुभ कर्म
उनके फ लको भोगता हुआ भी वीतराग चिदानंद परमस्वभावरूप शुद्धात्मतत्त्वकी भावनासे
उत्पन्न अतीन्द्रियसुखरूप अमृतसे तृप्त हुआ जो रागी-द्वेषी नहीं होता, वह जीव फि र ज्ञानावरणादि
कर्मोंको नहीं बाँधता है, और नये कर्मोंका बंधका अभाव होनेसे प्राचीन कर्मोंकी निर्जरा ही
होती है
यह संवरपूर्वक निर्जरा ही मोक्षका मूल है ? ऐसा कथन सुनकर प्रभाकरभट्टने प्रश्न
किया कि हे प्रभो, ‘‘कर्मके फ लको भोगता हुआ भी ज्ञानसे नहीं बँधता’’ ऐसा सांख्य आदिक
भी कहते हैं, उनको तुम दोष क्यों देते हो ? उसका समाधान श्रीगुरु करते हैं
हम तो
आत्मज्ञान संयुक्त ज्ञानी जीवोंकी अपेक्षासे कहते हैं, वे ज्ञानके प्रभावसे कर्म - फ ल भोगते हुए