Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-৮২ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৫৩
नन्दैकशुद्धात्मनो विलक्षणं पञ्चेन्द्रियविषयसुखाभिलाषरागं मणि मनसि जाम ण मिल्लइ यावन्तं
कालं न मुञ्चति एत्थु अत्र जगति सो णवि मुच्चइ स जीवो नैव मुच्यते ज्ञानावरणादिकर्मणा
ताम तावन्तं कालं जिय हे जीव । किं कुर्वन्नपि । जाणंतु वि वीतरागानुष्ठानरहितः सन्
शब्दमात्रेण जानन्नपि । कं जानन् । परमत्थु परमार्थशब्दवाच्यनिजशुद्धात्मतत्त्वमिति । अयमत्र
भावार्थः । निजशुद्धात्मस्वभावज्ञानेऽपि शुद्धात्मोपलब्धिलक्षणवीतरागचारित्रभावनां विना मोक्षं न
लभत इति ।।८१।।
अथ निर्विकल्पात्मभावनाशून्यः शास्त्रं पठन्नपि तपश्चरणं कुर्वन्नपि परमार्थं न
वेत्तीति कथयति —
२०९) बुज्झइ सत्थइँ तउ चरइ पर परमत्थु ण वेइ ।
ताव ण मुंचइ जाम णवि इहु परमत्थु मुणेइ ।।८२।।
बुध्यते शास्त्राणि तपः चरति परं परमार्थं न वेत्ति ।
तावत् न मुच्यते यावत् नैव एनं परमार्थं मनुते ।।८२।।
ভাবার্থ: — জে জীব অণুমাত্র পণ – সূক্ষ্মপণ – এক (কেবল) বীতরাগ সদানংদরূপ শুদ্ধ
আত্মাথী বিলক্ষণ পংচেন্দ্রিযোনা বিষযসুখনী অভিলাষারূপ রাগনে জ্যাং সুধী মনমাংথী ছোডতো
নথী, ত্যাং সুধী তে আ সংসারমাং পরমার্থ শব্দথী বাচ্য এবা নিজশুদ্ধাত্মতত্ত্বনে বীতরাগ
অনুষ্ঠান রহিত থযো থকো (বীতরাগ অনুষ্ঠান বিনা) কেবল শব্দমাত্রথী জ জাণতো থকো
জ্ঞানাবরণাদি কর্মথী মূকাতো নথী. এ ভাবার্থ ছে কে নিজ শুদ্ধ আত্মস্বভাবনুং জ্ঞান হোবা ছতাং
পণ শুদ্ধ আত্মানী প্রাপ্তিস্বরূপ বীতরাগ চারিত্রনী ভাবনা বিনা মোক্ষ মলতো নথী. ৮১.
জে নির্বিকল্প আত্মভাবনাথী শূন্য ছে তে শাস্ত্রনে ভণবা ছতাং, তপশ্চরণ করবা ছতাং
পণ পরমার্থনে জাণতো নথী, এম কহে ছে : —
इच्छा रखता है, मनमें थोड़ासा भी राग रखता है, वह आगमज्ञानसे आत्माको शब्दमात्र जानता
हुआ भी वीतरागचारित्रकी भावनाके बिना मोक्षको नहीं पाता ।।८१।।
आगे जो निर्विकल्प आत्म - भावनासे शून्य है, वह शास्त्रको पढ़ता हुआ भी तथा
तपश्चरण करता हुआ भी परमार्थको नहीं जानता है, ऐसा कहते हैं —
गाथा – ८२
अन्वयार्थ : — [शास्त्राणि ] शास्त्रोंको [बुध्यते ] जानता है, [तपः चरति ] और