Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৩৫৮ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-৮৪
संवेदनरूपः स एव बोधो ग्राह्यो न चान्यः । तेनानुबोधेन विना शास्त्रे पठितेऽपि मूढो
भवतीति । अत्र यः कोऽपि परमात्मबोधजनकमल्पशास्त्रं ज्ञात्वापि वीतरागभावनां करोति
स सिद्धयतीति । तथा चोक्त म् — ‘‘वीरा वेरग्गपरा थोवं पि हु सिक्खिऊण सिज्झंति । ण
हु सिज्झंति विरागेण विणा पढिदेसु वि सव्वसत्थेसु ।।’’ परं किन्तु — ‘‘अक्खरडा जोयंतु
ठिउ अप्पि ण दिण्णउ चित्तु । कणविरउ पलालु जिमु पर संगहिउ बहुत्तु ।।’’ इत्यादि
पाठमात्रं गृहीत्वा परेषां बहुशास्त्रज्ञानिनां दूषणा न कर्तव्या । तैर्बहुश्रुतैरप्यन्येषा-
मल्पश्रुततपोधनानां दूषणा न कर्तव्या । कस्मादिति चेत् । दूषणे कृते सति परस्परं
উত্পন্ন জে বীতরাগস্বসংবেদনরূপ বোধ ছে তে জ বোধ গ্রাহ্য ছে, পণ অন্য (বীজো বোধ)
নহি. তে অনুবোধ বিনা (বীতরাগ স্বসংবেদনরূপ জ্ঞান বিনা) শাস্ত্র ভণ্যো হোবা ছতাং পণ
মূঢ ছে.
অহীং, জে কোঈ পণ পরমাত্মবোধনা উত্পন্ন করনার অল্প শাস্ত্র জাণীনে পণ
বীতরাগ ভাবনা করে ছে তে সিদ্ধ থায ছে. কহ্যুং পণ ছে কে — ‘‘वीरा वेरग्गपरा थोवं पि हु
सिक्खिऊण सिज्झंति । ण हु सिज्झंति विरागेण विणा पढिदेसु वि सव्वसत्थेसु’’ (অর্থ: — বৈরাগ্যমাং
তত্পর বীরো থোডাক শাস্ত্রনে শীখীনে পণ শুদ্ধ থায ছে পণ সর্ব শাস্ত্রো ভণবা ছতাং পণ
জীব বৈরাগ্য বিনা সিদ্ধি পামতো নথী) বলী কহ্যুং ছে কে ‘‘अक्खरडा जोयंतु ठिउ अप्पि ण दिण्णउ
चित्तु । कणविरउ पलालु जिमु पर संगहिउ बहुत्तु ।। (দোহা পাহুড ৮৪) (অর্থ: — জে শাস্ত্রোনা
অক্ষরোনে জ জুএ ছে পণ চিত্তনে পোতানা আত্মামাং স্থির করতো নথী তো মানো কে তেণে
অনাজনা কণোথী রহিত ঘণুং পরাল নিরর্থক সংগ্রহ করবা জেবুং কর্যুং) ইত্যাদি পাঠ মাত্র গ্রহীনে
অনে বহু শাস্ত্রনা জাণনারাওনে দোষ ন দেবো. তে বহুশ্রুতজ্ঞোএ পণ অন্য অল্পশ্রুতজ্ঞ
अध्यात्म - शास्त्रोंमें प्रशंसा की गयी है । इसलिये स्वसंवेदन ज्ञानके बिना शास्त्रोंके पढ़े हुए भी
मूर्ख हैं । और जो कोई परमात्मज्ञानके उत्पन्न करनेवाले (छोटे) थोड़े शास्त्रोंको भी जानकर
वीतराग स्वसंवेदनज्ञानकी भावना करते हैं, वे मुक्त हो जाते हैं । ऐसा ही कथन ग्रन्थोंमें
हरएक जगह कहा है, कि वैराग्यमें लगे हुए जो मोहशत्रुको जीतनेवाले हैं, वे थोड़े शास्त्रोंको
ही पढ़कर सुधर जाते हैं — मुक्त हो जाते हैं, और वैराग्यके बिना सब शास्त्रोंको पढ़ते हुए भी
मुक्त नहीं होते । यह निश्चय जानना परंतु यह कथन अपेक्षासे है । इस बहानेसे शास्त्र
पढ़नेका अभ्यास नहीं छोड़ना, और जो विशेष शास्त्रके पाठी हैं, उनको दूषण न देना । जो
शास्त्रके अक्षर बता रहा है, और आत्मामें चित्त नहीं लगाया वह ऐसे जानना कि जैसे किसीने
कण रहित बहुत भूसेका ढेर कर लिया हो, वह किसी कामका नहीं है । इत्यादि पीठिकामात्र
सुनकर जो विशेष शास्त्रज्ञ हैं, उनकी निंदा नहीं करनी, और जो बहुश्रुत हैं, उनको भी अल्प
शास्त्रज्ञोंकी निंदा नहीं करनी चाहिए । क्योंकि परके दोष ग्रहण करनेसे राग-द्वेषकी उत्पत्ति