Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-৮৫ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৫৯
रागद्वेषोत्पत्तिर्भवति तेन ज्ञानतपश्चरणादिकं नश्यतीति भावार्थः ।।८४।।
अथ वीतरागस्वसंवेदनज्ञानरहितानां तीर्थभ्रमणेन मोक्षो न भवतीति कथयति —
२१२) तित्थइँ तित्थु भमंताहँ मूढहँ मोक्खु ण होइ ।
णाण-विवज्जिउ जेण जिय मुणिवरु होइ ण सोइ ।।८५।।
तीर्थं तीर्थं भ्रमतां मूढानां मोक्षो न भवति ।
ज्ञानविवर्जितो येन जीव मुनिवरो भवति न स एव ।।८५।।
तीर्थं तीर्थं प्रति भ्रमतां मूढात्मनां मोक्षो न भवति । कस्मादिति चेत् ।
ज्ञानविवर्जितो येन कारणेन हे जीव मुनिवरो न भवति स एवेति । तथाहि । निर्दोषि-
परमात्मभावनोत्पन्नवीतरागपरमाह्लादस्यन्दिसुन्दरानन्दरूपनिर्मलनीरपूरप्रवाहनिर्झरज्ञानदर्शनादिगुणसमूह
তপস্বীওনে দোষ ন দেবো. শা মাটে? কে দোষ দেতাং পরস্পর রাগদ্বেষনী উত্পত্তি থায ছে, তেনাথী
জ্ঞানতপশ্চরণ বগেরে নাশ পামে ছে, এবো ভাবার্থ ছে. ৮৪.
হবে, বীতরাগ সংবেদনরূপ জ্ঞানথী রহিত জীবোনে তীর্থভ্রমণ করবাথী পণ মোক্ষ থতো নথী,
এম কহে ছে : —
ভাবার্থ: — নির্দোষ পরমাত্মানী ভাবনাথী উত্পন্ন বীতরাগ পরম আহ্লাদ ঝরতা
সুংদর আনংদরূপ নির্মল জলনা পূরনা প্রবাহনা ঝরণাথী অনে জ্ঞানদর্শনাদি গুণনা সমূহরূপ
होती है, उससे ज्ञान और तपका नाश होता है, यह निश्चयसे जानना ।।८४।।
आगे वीतरागस्वसंवेदनज्ञानसे रहित जीवोंको तीर्थ - भ्रमण करनेसे भी मोक्ष नहीं है, ऐसा
कहते हैं —
गाथा – ८५
अन्वयार्थ : — [तीर्थं तीर्थं ] तीर्थ तीर्थ प्रति [भ्रमतां ] भ्रमण करनेवाले [मूढानां ]
मूर्खोंको [मोक्षः ] मुक्ति [न भवति ] नहीं होती, [जीव ] हे जीव, [येन ] क्योंकि जो
[ज्ञानविवर्जितः ] ज्ञानरहित हैं, [स एव ] वह [मुनिवरः न भवति ] मुनीश्वर नहीं हैं, संसारी
हैं । मुनीश्वर तो वे ही हैं, जो समस्त विकल्पजालोंसे रहित होके अपने स्वरूपमें रमें, वे ही
मोक्ष पाते हैं ।
भावार्थ : — निर्दोष परमात्माकी भावनासे उत्पन्न हुआ जो वीतराग परम आनंदरूप
निर्मल जल उसके धारण करनेवाले और ज्ञान-दर्शनादि गुणोंके समूहरूपी चंदनादि वृक्षोंके