Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৩৬০ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-৮৫
चन्दनादिद्रुमवनराजितंदेवेन्द्रचक्रवर्तिगणधरादिभव्यजीवतीर्थयात्रिकसमूहश्रवणसुखकरदिव्यध्वनिरूपराजहंस-
प्रभृतिविविधपक्षिकोलाहलमनोहरं यदर्हद्वीतरागसर्वज्ञस्वरूपं तदेव निश्चयेन गङ्गादितीर्थं न
लोकव्यवहारप्रसिद्धं गङ्गादिकम् । परमनिश्चयेन तु जिनेश्वरपरमतीर्थसद्रशं संसारतरणोपाय-
कारणभूतत्वाद्वीतरागनिर्विकल्पपरमसमाधिरतानां निजशुद्धात्मतत्त्वस्मरणमेव तीर्थं, व्यवहारेण तु
तीर्थंकरपरमदेवादिगुणस्मरणहेतुभूतं मुख्यवृत्त्या पुण्यबन्धकारणं तन्निर्वाणस्थानादिकं च तीर्थ-
मिति । अयमत्र भावार्थः । पूर्वोक्तं निश्चयतीर्थं श्रद्धानपरिज्ञानानुष्ठानरहितानामज्ञानिनां शेष-
तीर्थं मुक्ति कारणं न भवतीति ।।८५।।
अथ ज्ञानिनां तथैवाज्ञानिनां च यतीनामन्तरं दर्शयति —
চংদনাদি বৃক্ষোনা বনথী শোভিত, দেবেন্দ্র, চক্রবর্তী, গণধরাদি ভব্য জীবরূপী তীর্থযাত্রালুওনা
কর্ণনে সুখকারী এবা দিব্যধ্বনিরূপ রাজহংসাদি বিবিধ পক্ষীওনা কোলাহলথী মনোহর এবুং জে
অর্হংত বীতরাগ সর্বজ্ঞনুং স্বরূপ তে জ নিশ্চযথী (খরেখর) গংগাদি তীর্থ ছে, পণ লোকব্যবহারমাং
প্রসিদ্ধ এবা গংগাদি, তে তীর্থ নথী.
পরম নিশ্চযনযথী তো বীতরাগ নির্বিকল্প পরমসমাধিমাং রত মুনিওনে, সংসার তরবানা
উপাযমাং কারণভূত হোবাথী জিনেশ্বররূপ পরমতীর্থনা জেবুং নিজশুদ্ধআত্মতত্ত্বনুং স্মরণ জ তীর্থ
ছে অনে ব্যবহারনযথী তীর্থংকর পরমদেবাদিনা গুণস্মরণনা কারণভূত অনে মুখ্যপণে পুণ্যবংধনা
কারণরূপ তে নির্বাণস্থান আদি তীর্থ ছে.
অহীং, এ ভাবার্থ ছে কে পূর্বোক্ত নিশ্চযতীর্থনা শ্রদ্ধান, পরিজ্ঞান অনে অনুষ্ঠানথী রহিত
অজ্ঞানীওনে অন্য তীর্থ মুক্তিনুং কারণ থতুং নথী. ৮৫.
হবে, জ্ঞানী অনে অজ্ঞানী যতিওনো তফাবত দর্শাবে ছে : —
वनोंसे शोभित तथा देवेन्द्र चक्रवर्त्ती गणधरादि भव्यजीवरूपी तीर्थ - यात्रियोंके कानोंको सुखकारी
ऐसी दिव्यध्वनिसे शोभायमान और अनेक मुनिजनरूपी राजहंसोंको आदि लेकर नाना तरहके
पक्षियोंके शब्दोंसे महामनोहर जो अरहंत वीतराग सर्वज्ञ वे ही निश्चयसे महातीर्थ हैं, उनके
समान अन्य तीर्थ नहीं हैं । वे ही संसारके तरनेके कारण परमतीर्थ हैं । जो परम समाधि में
लीन महामुनि हैं, उनके वे ही तीर्थ हैं, निश्चयसे निज शुद्धात्मतत्त्वके ध्यानके समान दूसरा
कोई तीर्थ नहीं है, और व्यवहारनयसे तीर्थंकर परमदेवादिके गुणस्मरणके कारण मुख्यतासे शुभ
बंधके कारण ऐसे जो कैलास, सम्मेदशिखर आदि निर्वाणस्थान हैं, वे भी व्यवहारमात्र तीर्थ
कहे हैं । जो तीर्थ – तीर्थ प्रतिभ्रमण करे, और निज तीर्थका जिसके श्रद्धान परिज्ञान आचरण नहीं
हो, वह अज्ञानी है । उसके तीर्थ भ्रमनेसे मोक्ष नहीं हो सकता ।।८५।।
आगे ज्ञानी और अज्ञानी यतियोंमें बहुत बड़ा भेद दिखलाते हैं —