Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-৯০ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৬৭
ममत्वं न करोतीति । तथा चोक्त म् — ‘‘रम्येषु वस्तुवनितादिषु वीतमोहो मुह्येद् वृथा किमिति
संयमसाधनेषु । धीमान् किमामयभयात्परिहृत्य भुक्तिं पीत्वौषधं व्रजति
जातुचिदप्यजीर्णम् ।।’’ ।।८९।।
अथ केनापि जिनदीक्षां गृहीत्वा शिरोलुञ्चनं कृत्वापि सर्वसंगपरित्यागमकुर्वतात्मा वञ्चित
इति निरूपयति —
२१७) केण वि अप्पउ वंचियउ सिरु लुंचिवि छारेण ।
सयल वि संग ण परिहरिय जिणवर-लिंगधरेण ।।९०।।
केनापि आत्मा वञ्चितः शिरो लुञ्चित्वा क्षारेण ।
सकला अपि संगा न परिहृता जिनवरलिङ्गधरेण ।।९०।।
গ্রহে ছে তোপণ মমত্ব করতো নথী. কহ্যুং পণ ছে কে–”‘‘रम्येषु वस्तुवनितादिषु वीतमोहो मुह्येद् वृथा’
किमिति संयमसाधनेषु । धीमान् किमामयभयात्परिहृत्य भुक्तिं पीत्वौषधं व्रजति जातुचिदप्यजीर्णम् ।।’’
(আত্মানুশাসন ২২৮) (অর্থ: — হে মুনি! স্ত্রী, ধনাদি মনোজ্ঞ বস্তুওথী তুং মোহরহিত থঈ
গযো ছো তো হবে মাত্র সংযমনা সাধনরূপ এবা আ পীংছী, কমংডল আদি বস্তুওমাং তুং কেম ব্যর্থ
মোহ রাখে ছে? কোঈ বুদ্ধিমান পুরুষো রোগনা ভযথী ভোজননো ত্যাগ করীনে মাত্রাথী বধারে ঔষধনুং
সেবন করীনে শুং ফরী অজীর্ণ থায এবুং কদী করশে? (পীংছী আদিনে সংযমনী রক্ষানুং মাত্র নিমিত্ত
জাণীনে তেনা পর পণ মোহ করবা যোগ্য নথী) ৮৯.
হবে, কহে ছে কে জে কোঈএ জিনদীক্ষা গ্রহীনে অনে মাথানা বালনো লোচ করীনে পণ
সর্বসংগনে ছোড্যো নহি তেণে আত্মবংচনা করী (পোতানী জাতনে ছেতরী) এম কহে ছে : —
हैं । ऐसा दूसरी जगह ‘‘रम्येषु’’ इत्यादिसे कहा है, कि मनोज्ञ स्त्री आदिक वस्तुओंमें जिसने
मोह तोड़ दिया है, ऐसा महामुनि संयमके साधन पुस्तक, पीछी, कमंडलु आदि उपकरणोंमें
वृथा मोहको कैसे कर सकता है ? कभी नहीं कर सकता । जैसे कोई बुद्धिमान पुरुष रोगके
भयसे अजीर्णको दूर करना चाहे और अजीर्णके दूर करनेके लिये औषधिका सेवन करे, तो
क्या मात्रासे अधिक ले सकता है ? ऐसा कभी नहीं करेगा, मात्राप्रमाण ही लेगा ।।८९।।
आगे ऐसा कहते हैं, जिसने जिनदीक्षा धरके केशोंका लोंच किया, और सकल
परिग्रहका त्याग नहीं किया, उसने अपनी आत्मा ही को वंचित किया —
गाथा – ९०
अन्वयार्थ : — [केनापि ] जिस किसीने [जिनवरलिंगणधरेण ] जिनवरका भेष धारण