Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৩৭৬ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-৯৫
इदं प्रत्यक्षीभूतम् इदं किम् अच्छुउ कहिं वि कुडिल्लियइ तिष्ठतु कस्यामपि कुडयां शरीरे
सो तसु करइ ण भेउ स ज्ञानी तस्य जीवस्य देहभेदेन भेदं न करोति तथाहि योऽसौ
वीतरागस्वसंवेदनज्ञानी निश्चयस्य निश्चयरत्नत्रयलक्षणपरमात्मनो वा भक्त : तस्येदं लक्षणं
जानिहि
हे प्रभाकरभट्ट क्वापि देहे तिष्ठतु जीवस्तथापि शुद्धनिश्चयेन षोडशवर्णिका-
सुवर्णवत्केवलज्ञानादिगुणैर्भेदं न करोतीति अत्राह प्रभाकरभट्टः हे भगवन् जीवानां यदि
देहभेदेन भेदो नास्ति तर्हि यथा केचन वदन्त्येक एव जीवस्तन्मतमायातम् भगवानाह
शुद्धसंग्रहनयेन सेनावनादिवज्जात्यपेक्षया भेदो नास्ति व्यवहारनयेन पुनर्व्यक्त्यपेक्षया वने
भिन्नभिन्नवृक्षवत् सेनायां भिन्नभिन्नहस्त्यश्वादिवद्भेदोऽस्तीति भावार्थः
।।९५।।
নিশ্চযরত্নত্রস্বরূপ পরমাত্মানো ভক্ত ছে তেনুং হে প্রভাকরভট্ট! আ লক্ষণ জাণ কে তে, জীব
গমে তে দেহমাং রহ্যো হোয, তোপণ শুদ্ধনিশ্চযনযথী সোলবলা সোনানী মাফক (জেম সোলবলা
সোনামাং বানভেদ নথী তেম) কেবলজ্ঞানাদি (অনংত) গুণোনী অপেক্ষাথী (সমান হোবাথী) তেমাং
ভেদ করতো নথী.
আবুং কথন সাংভলীনে প্রভাকরভট্ট প্রশ্ন করে ছে কে, হে ভগবান! জো জীবোমাং
দেহনা ভেদথী ভেদ নথী তো জেবী রীতে কোঈ এক কহে ছে কে ‘এক জ জীব ছে’ তেনো মত
সিদ্ধ থশে?
ত্যারে ভগবান যোগীন্দ্রদেব কহে ছে কে শুদ্ধসংগ্রহনযথী সেনা, বনাদিনী মাফক জাতি-
অপেক্ষাএ জীবোমাং ভেদ নথী পণ ব্যবহারনযথী ব্যক্তিনী অপেক্ষাএ বনমাং জুদাং জুদাং বৃক্ষো
ছে, সেনামাং ভিন্ন ভিন্ন হাথী, ঘোডা আদি ছে তেম জীবোমাং ভেদ ছে, এবো ভাবার্থ
ছে. ৯৫.
प्रभाकरभट्ट तू निःसंदेह जान, जो किसी शरीरमें कर्मके उदयसे जीव रहे, परंतु निश्चयसे शुद्ध,
बुद्ध (ज्ञानी) ही है
जैसे सोनेमें वानभेद है, वैसे जीवोंमें वानभेद नहीं है, केवलज्ञानादि
अनंत गुणोंसे सब जीव समान हैं ऐसा कथन सुनकर प्रभाकरभट्टने प्रश्न किया, हे भगवन्,
जो जीवोंमें देहके भेदसे भेद नहीं है, सब समान हैं, तब जो वेदान्ती एक ही आत्मा मानते
हैं, उनको क्यों दोष देते हो ? तब श्रीगुरु उसका समाधान करते हैं,
कि शुद्धसंग्रहनयसे सेना
एक ही कही जाती है, लेकिन सेनामें अनेक हैं, तो भी ऐसे कहते हैं, कि सेना आयी, सेना
गयी, उसी प्रकार जातिकी अपेक्षासे जीवोंमें भेद नहीं हैं, सब एक जाति हैं, और व्यवहारनयसे
व्यक्तिकी अपेक्षा भिन्न
भिन्न हैं, अनंत जीव हैं, एक नहीं है जैसे वन एक कहा जाता है,
और वृक्ष जुदे जुदे हैं, उसी तरह जातिसे जीवोंमें एकता है, लेकिन द्रव्य जुदे जुदे हैं, तथा
जैसे सेना एक है, परन्तु हाथी, घोड़े, रथ, सुभट अनेक हैं, उसी तरह जीवोंमें जानना
।।९५।।