Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-৯৬ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৭৭
अथ त्रिभुवनस्थजीवानां मूढा भेदं कुर्वन्ति, ज्ञानिनस्तु भिन्नभिन्नसुवर्णानां षोडश-
वर्णिकैकत्ववत्केवलज्ञानलक्षणेनैकत्वं जानन्तीति दर्शयति —
२२३) जीवहँ तिहुयण-संठियहँ मूढा भेउ करंति ।
केवल-णाणिं णाणि फु डु सयलु वि एक्कु मुणंति ।।९६।।
जीवानां त्रिभुवनसंस्थितानां मूढा भेदं कुर्वन्ति ।
केवलज्ञानेन ज्ञानिनः स्फु टं सकलमपि एकं मन्यन्ते ।।९६।।
जीवहं इत्यादि । जीवहं तिहुयण-संठियहं श्वेतकृष्णरक्त ादिभिन्नभिन्नवस्त्रैर्वेष्टितानां
षोडशवर्णिकानां भिन्नभिन्नसुवर्णानां यथा व्यवहारेण वस्त्रवेष्टनभेदेन भेदः तथा त्रिभुवन-
संस्थितानां जीवानां व्यवहारेण भेदं द्रष्ट्वा निश्चयनयेनापि मूढा भेउ करंति मूढात्मानो भेदं
হবে, মূঢ জীবো ত্রণ লোকমাং রহেলা জীবোনা ভেদ করে ছে পণ জ্ঞানীও তো, জুদা
জুদা সোনামাং সোলবলাপণাথী একত্ব ছে তেম জীবোমাং কেবলজ্ঞানপ্রমাণথী একত্ব জাণে ছে,
এম দর্শাবে ছে : —
ভাবার্থ: — শ্বেত, কৃষ্ণ, রক্ত আদি জুদাং জুদাং বস্ত্রোথী বীংটাযেল জুদাং জুদাং সোলবলাং
সোনানা জেবী রীতে ব্যবহারনযথী বস্ত্রনাং বীংটাযেলা ভেদথী ভেদ ছে, তেবী রীতে ত্রণ লোকমাং রহেলা
জীবোনা ব্যবহারথী ভেদ দেখীনে মূঢ জীবো নিশ্চযনযথী পণ ভেদ করে ছে অনে বীতরাগ
आगे तीन लोकमें रहनेवाले जीवोंका अज्ञानी भेद करते हैं । जीवपनेसे कोई कम-बढ़
नहीं हैं, कर्मके उदयसे शरीर – भेद हैं, परंतु द्रव्यकर सब समान हैं । जैसे सोनेमें वान – भेद है,
वैसे ही परके संयोगसे भेद मालूम होता है, तो भी सुवर्णपनेसे सब समान हैं, ऐसा दिखलाते
हैं —
गाथा – ९६
अन्वयार्थ : — [त्रिभुवनसंस्थितानां ] तीन भुवनमें रहनेवाले [जीवानां ] जीवोंका
[मूढाः ] मूर्ख ही [भेदं ] भेद [कुर्वंति ] करते हैं, और [ज्ञानिनः ] ज्ञानी जीव [केवलज्ञानेन ]
केवलज्ञानसे [स्फु टं ] प्रगट [सकलमपि ] सब जीवोंको [एकं मन्यंते ] समान जानते हैं ।
भावार्थ : — व्यवहारनयकर सोलहवानके सुवर्ण भिन्न भिन्न वस्त्रोंमें लपेटें तो वस्त्रके
भेदसे भेद है, परंतु सुवर्णपनेसे भेद नहीं है, उसी प्रकार तीन लोकमें तिष्ठे हुए जीवोंका व्यवहार-
नयसे शरीरके भेदसे भेद है, परंतु जीवपनेसे भेद नहीं है । देहका भेद देखकर मूढ़ जीव भेद