Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১০২ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৮৭
अथ जीवानां निश्चयनयेन योऽसौ देहभेदेन भेदं करोति स जीवानां दर्शन-
ज्ञानचारित्रलक्षणं न जानातीत्यभिप्रायं मनसि धृत्वा सूत्रमिदं कथयति —
२२९) देह – विभेयइँ जो कुणइ जीवइँ भेउ विचित्तु ।
सो णवि लक्खणु मुणइ तहँ दंसणु णाणु चरित्तु ।।१०२।।
देहविभेदेन यः करोति जीवानां भेदं विचित्रम् ।
स नैव लक्षणं मनुते तेषां दर्शनं ज्ञानं चारित्रम् ।।१०२।।
देह इत्यादि । देह-विभेयइँ देहममत्वमूलभूतानां ख्यातिपूजालाभस्वरूपादीनां अपध्यानानां
विपरीतस्य स्वशुद्धात्मध्यानस्याभावे यानि कृतानि कर्माणि तदुदयजनितेन देहभेदेन जो कुणइ
यः करोति । कम् । जीवइं भेउ विचित्तु जीवानां भेदं विचित्रं नरनारकादिदेहरूपं सो णवि
হবে, নিশ্চযনযথী জে দেহনা ভেদথী জীবোনা ভেদ করে ছে তে জীবোনুং দর্শন
-জ্ঞান-চারিত্রলক্ষণ জাণতো নথী এবো অভিপ্রায মনমাং রাখীনে আ গাথাসূত্র কহে ছে : —
ভাবার্থ: — দেহনা মমত্বনুং মূল কারণ জে খ্যাতি-পূজা-লাভস্বরূপ আদি অপধ্যানো,
(আর্তরৌদ্রস্বরূপ মাঠাং ধ্যানো) তেমনাথী বিপরীত, স্বশুদ্ধাত্মধ্যাননা অভাবমাং জে কর্মো উপার্জিত
কর্যাং হোয তেমনা উদযথী উত্পন্ন দেহনা ভেদথী জীবোনাং নর-নারকাদি দেহরূপ অনেক প্রকারনা ভেদনে
জে করে ছে তে, জীবোনুং সম্যগ্দর্শন, সম্যগ্জ্ঞান অনে সম্যক্চারিত্র লক্ষণ ছে এম জাণতো নথী.
आगे जीव ही को जानते हैं, परंतु उसके लक्षण नहीं जानते, वह अभिप्राय मनमें रखकर
व्याख्यान करते हैं —
गाथा – १०२
अन्वयार्थ : — [यः ] जो [देहविभेदेन ] शरीरोंके भेदसे [जीवानां ] जीवोंका
[विचित्रम् ] नानारूप [भेदं ] भेद [करोति ] करता है, [स ] वह [तेषां ] उन जीवोंका [दर्शनं
ज्ञानं चारित्रम् ] दर्शन-ज्ञान-चारित्र [लक्षणं ] लक्षण [नैव मनुते ] नहीं जानता, अर्थात् उसको
गुणोंकी परीक्षा (पहचान) नहीं है ।
भावार्थ : — देहके ममत्वके मूल कारण ख्याति (अपनी बड़ाई) पूजा और लाभरूप
जो आर्त रौद्रस्वरूप खोटे ध्यान उनसे निज शुद्धात्माका ध्यान उसके अभावसे इस जीवने
उपार्जन किये जो शुभ-अशुभ कर्म उनके उदयसे उत्पन्न जो शरीर है, उसके भेदसे भेद मानता
है, उसको दर्शनादि गुणोंकी गम्य नहीं है । यद्यपि पापके उदयसे नरक – योनि, पुण्यके उदयसे