Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৩৯৬ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১০৭
वीतरागसर्वज्ञप्रणीतमार्गेण मन्यन्ते तदा तेषां दूषणं नास्ति, यदि पुनरेकः पुरुषविशेषो व्यापी
जगत्कर्ता ब्रह्मादिना-मास्तीति मन्यन्ते तदा तेषां दूषणम् । कस्माद् दूषणमिति चेत् । प्रत्यक्षादि-
प्रमाणबाधितत्वात् साधकप्रमाणप्रमेयचिन्ता तर्के विचारिता तिष्ठत्यत्र तु नोच्यते अध्यात्म-
शास्त्रत्वादित्यभिप्रायः ।।१०७।। इति षोडशवर्णिकासुवर्णद्रष्टान्तेन केवलज्ञानादिलक्षणेन सर्वे
‘পরমবিষ্ণুময’ কহে ছে, বলী কেটলাক ‘পরমশিবময’ কহে ছে.
অহীং, শিষ্য প্রশ্ন করে ছে কে — জো তমে পণ আ প্রমাণে জগতনে ‘পরমব্রহ্মময’,
‘পরমবিষ্ণুময’, ‘পরমশিবময’ মানো ছো তো পছী তমে অন্যমতবালাওনে শা মাটে দূষণ
আপো ছো?
তেনো পরিহার কহে ছে – জো পূর্বোক্ত নযবিভাগথী কেবলজ্ঞানাদি গুণোনী অপেক্ষাএ
বীতরাগসর্বজ্ঞপ্রণীত মার্গানুসার মানে তো তেমনে দূষণ নথী, পণ জো কোঈ এক
পুরুষবিশেষনে জগত্ব্যাপী, জগত্কর্তা তরীকে ব্রহ্মাদিনা নাম বডে মানে ছে তো তেমনে দূষণ
ছে, কারণ কে তে প্রত্যক্ষ আদি প্রমাণোথী বাধিত ছে. (জো কোঈ এক শুদ্ধ, বুদ্ধ নিত্য
মুক্ত ছে তে শুদ্ধ-বুদ্ধনে কর্তাপণুং, হর্তাপণুং সংভবী শকতুং নথী, কারণ কে ভগবান মোহথী
রহিত ছে মাটে তেনে কর্তা-হর্তাপণানী ইচ্ছা সংভবী শকে নহি. তে তো নির্দোষ ছে মাটে কর্তা
-হর্তা ভগবাননে মানবামাং প্রত্যক্ষ বিরোধ আবে ছে) তেনা সাধক প্রমাণ প্রমেযনী বিচারণা
ন্যাযশাস্ত্রোমাং করবামাং আবী ছে. অহীং অধ্যাত্মশাস্ত্র হোবাথী তেনুং বিবেচন কহেবামাং আবতুং
নথী, এবো অভিপ্রায ছে. ১০৭.
ही परमविष्णु कहना, परमशिव कहना चाहिये । यही अभिप्राय लेकर कोई एक ब्रह्ममयी जगत्
कहते हैं, कोई एक विष्णुमयी कहते हैं, कोई एक शिवमयी कहते हैं । यहाँ पर शिष्यने प्रश्न
किया, कि तुम भी जीवोंको परब्रह्म मानते हो, तथा परमविष्णु, परमशिव मानते हो, तो
अन्यमतवालोंको क्यों दूषण देते हो ? उसका समाधान — हम तो पूर्वोक्त नयविभागकर
केवलज्ञानादि गुणकी अपेक्षा वीतराग सर्वज्ञप्रणीत मार्गसे जीवोंको ऐसा मानते हैं, तो दूषण नहीं
है । इस तरह वे नहीं मानते हैं । वे एक कोई पुरुष जगत्का कर्त्ता-हर्त्ता मानते हैं । इसलिये
उनको दूषण दिया जाता है, क्योंकि जो कोई एक शुद्ध-बुद्ध नित्य मुक्त है, उस शुद्ध-बुद्धको
कर्त्ता-हर्त्तापना हो ही नहीं सकता, और अच्छा है वह मोहकी प्रकृति है । भगवान् मोहसे रहित
हैं, इसलिये कर्त्ता-हर्त्ता नहीं हो सकते । कर्त्ता-हर्त्ता मानना प्रत्यक्ष विरोध है । हम तो जीव –
राशिको परमब्रह्म मानते हैं, उसी जीवराशिसे लोक भरा हुआ है । अन्यमती ऐसा मानते हैं, कि
एक ही ब्रह्म अनंतरूप हो रहा है । जो वही एक सबरूप हो रहा होवे, तो नरक निगोद स्थानको
कौन भोगे ? इसलिये जीव अनंत हैं । इन जीवोंको ही परमब्रह्म, परमशिव कहते हैं, ऐसा तू
निश्चयसे जान ।।१०७।।