Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১১১ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪০১
परमात्मपदार्थप्रतिपक्षभूतैर्निश्चयनयेन स्वकीयबुद्धिदोषरूपैः रागद्वेषादिपरिणामैः खलैर्दुष्टैर्व्यवहारेण
तु मिथ्यात्वरागादिपरिणतपुरुषैः । अस्मिन्नर्थे द्रष्टान्तमाह । वइसाणरु लोहहं मिलिउ वैश्वानरो
लोहमिलितः । तें तेन कारणेन पिट्टियइघणेहिं पिट्टनक्रियां लभते । कैः घनैरिति ।
अत्रानाकुलत्वसौख्यविघातको येन द्रष्टश्रुतानुभूतभोगकांक्षारूपनिदानबन्धाद्यपध्यानपरिणाम एव
परसंसर्गस्त्याज्यः । व्यवहारेण तु परपरिणतपुरुष इत्याभिप्रायः ।।११०।।
अथ मोहपरित्यागं दर्शयति —
२३८) जोइय मोहु परिच्चयहि मोहु ण भल्लउ होइ ।
मोहासत्तउ सयलु जगु दुक्खु सहंतउ जोइ ।।१११।।
योगिन् मोहं परित्यज मोहो न भद्रो भवति ।
मोहासक्तं सकलं जगद् दुःखं सहमानं पश्य ।।१११।।
পরমাত্মপদার্থনা প্রতিপক্ষভূত অনে নিশ্চযনযথী স্বকীযবুদ্ধিদোষরূপ দুষ্ট রাগদ্বেষ আদি পরিণামো
অনে ব্যবহারনযথী মিথ্যাত্ব, রাগাদিরূপে পরিণত দুষ্ট পুরুষো সাথেনা সংসর্গথী, নাশ পামে ছে.
আনুং সমর্থন করবা মাটে দ্রষ্টাংত কহে ছে. অগ্নি লোঢানো সংগ পামে ছে তেথী ঘণ বডে টিপাযা
করে ছে.
অহীং, অনাকুলতারূপ সুখনা বিঘাতক, দেখেলা, সাংভলেলা অনে অনুভবেলা ভোগোনী
বাংছারূপ নিদানবংধ আদি অপধ্যানরূপ পরিণামরূপ জ পরসংসর্গ ত্যাজ্য ছে অনে ব্যবহারথী
পরপরিণত পুরুষ ত্যাজ্য ছে, এবো অভিপ্রায ছে. ১১০.
হবে, মোহনো ত্যাগ করবানুং দর্শাবে ছে : —
संगतिसे नाश हो जाते हैं । अथवा आत्माके निजगुण मिथ्यात्व रागादि अशुद्ध भावोंके संबंधसे
मलिन हो जाते हैं । जैसे अग्नि लोहेके संगमें पीटी – कूटी जाती है । यद्यपि आगको घन कूट
नहीं सकता, परंतु लोहेकी संगतिसे अग्नि भी कूटनेमें आती है, उसी तरह दोषोंके संगसे गुण
भी मलिन हो जाते हैं । यह कथन जानकर आकुलता रहित सुखके घातक जो देखे, सुने, अनुभव
किये भोगोंकी वाँछारूप निदानबंध आदि खोटे परिणामरूपी दुष्टोंकी संगति नहीं करना, अथवा
अनेक दोषोंकर सहित रागी-द्वेषी जीवोंकी भी संगति कभी नहीं करना, यह तात्पर्य है ।।११०।।
आगे मोहका त्याग करना दिखलाते हैं —
गाथा – १११
अन्वयार्थ : — [योगिन् ] हे योगी, तू [मोहं ] मोहको [परित्यज ] बिलकुल छोड़ दे,