Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১২৬ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪২৫
অহীং আ জীব মিথ্যাত্ব, রাগাদিমাং পরিণমীনে প্রথম তো পোতে জ পোতানা শুদ্ধ
আত্ম প্রাণোনে হণে ছে, পছী ভলে বহারমাং অন্য জীবোনো ঘাত থায কে ন থায, (তেনো)
কোঈ নিযম নথী. জেম বীজানো ঘাত করবা মাটে (তেনা তরফ ফেংকবা মাটে) তপ্ত লোখংডনা
গোলানে ঝালবা জতাং প্রথম তো পোতানো জ হাথ দাঝে ছে, এবো ভাবার্থ ছে.
কহ্যুং পণ ছে কে :‘‘स्वयमेवात्मनात्मानं हिनस्त्यात्मा कषायवान् पूर्वं प्राण्यन्तराणां तु
पश्चात्स्याद्वा न वा वधः ।।’’ (অর্থ:প্রমাদথী যুক্ত (কষাযবান্) আত্মা প্রথম তো পোতে
জ পোতাথী পোতানী হিংসা করে ছে, পছী অন্য প্রাণীওনো ঘাত থায কে ন থায,’’) (পর
জীবনী আযু বাকী রহী হোয তো তে মারী শকাতো নথী পণ আণে মারবানা ভাব কর্যা
মাটে তে নিঃসংদেহ হিংসক বনী চূক্যো অনে জ্যারে হিংসানো ভাব থযো ত্যারে তে কষাযবান
থযো. কষাযবান থবুং তে জ আত্মঘাত ছে.) ।।১২৬.
হবে, জীবনী হিংসা করবাথী নরকগতি থায ছে অনে জীবনুং রক্ষণ করবাথী স্বর্গ থায
मिथ्यात्वरागादिपरिणतः पूर्वं स्वयमेव निजशुद्धात्मप्राणं हिनस्ति बहिर्विषये अन्यजीवानां
प्राणघातो भवतु मा भवतु नियमो नास्ति
परघातार्थं तप्तायःपिण्डग्रहणेन स्वहस्तदाहवत् इति
भावार्थः तथा चोक्त म्‘‘स्वयमेवात्मनात्मानं हिनस्त्यात्मा कषायवान् पूर्वं प्राण्यन्तराणां
तु पश्चात्स्याद्वा न वा वधः ।।’’ ।।१२६।।
अथ जीववधेन नरकगतिस्तद्रक्षणे स्वर्गो भवतीति निश्चिनोति
और मत चूर, तथा अपने भाव हिंसारूप मत कर, उज्ज्वल भाव रख, जो तू जीवोंको दुःख
देगा, तो निश्चयसे अनंतगुणा दुःख पावेगा
यहाँ सारांश यह हैजो यह जीव मिथ्यात्व
रागादिरूप परिणत हुआ पहले तो अपने भावप्राणोंका नाश करता है, परजीवका घात तो हो
या न हो, परजीवका घात तो उसकी आयु पूर्ण हो गई हो, तब होता है, अन्यथा नहीं; परंतु
इसने जब परका घात विचारा, तब यह आत्मघाती हो चुका
जैसे गरम लोहेका गोला पकड़नेसे
अपने हाथ तो निस्संदेह जल जाते हैं इससे यह निश्चय हुआ, कि जो परजीवों पर खोटे भाव
करता है, वह आत्मघाती है ऐसा दूसरी जगह भी कहा है, कि जो आत्मा कषायवाला है,
निर्दयी है, वह पहले तो आप ही अपने से अपना घात करता है, इसलिये आत्मघाती है, पीछे
परजीवका घात होवे, या न होवे
जीवको आयु बाकी रही हो, तो यह नहीं मार सकता, परंतु
इसने मारनेके भाव किये, इस कारण निस्संदेह हिंसक हो चुका, और जब हिंसाके भाव हुए,
तब यह कषायवान् हुआ
कषायवान् होना ही आत्मघात है ।।१२६।।
आगे जीवहिंसाका फ ल नरकगति है, और रक्षा करनेसे स्वर्ग होता है, ऐसा
निश्चय करते हैं
১ শ্রী সর্বার্থসিদ্ধি অ-৭ গাথা ১৩নী টীকামাং আ গাথা ছে.