Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪২৬ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১২৭
ছে, এম নক্কী করে ছে.
ভাবার্থ: — নিশ্চযনযথী পোতানা জীবনো মিথ্যাত্ব, বিষয, কষাযনা পরিণামরূপ ঘাত
অনে ব্যবহারনযথী অন্য জীবোনো পাংচ ইন্দ্রিয, ত্রণবল, আযু অনে শ্বাসোচ্ছ্বাসনা বিনাশরূপ
ঘাত করনারনে নরকগতি থায ছে.
নিশ্চযথী পোতানা জীবনে বীতরাগনির্বিকল্পস্বসংবেদন-পরিণামরূপ অভযদান দেবাথী অনে
ব্যবহারথী পরজীবোনা প্রাণোনী রক্ষারূপ অভযদান করনারনে স্বর্গ থায ছে, এটলে কে পোতানে
(বীতরাগনির্বিকল্পস্বসংবেদনপরিণামরূপ অভযদান দেবাথী) মোক্ষ অনে পরজীবোনা প্রাণোনী
রক্ষারূপ অভযদান দেবাথী স্বর্গ থায ছে. এ রীতে বন্নে পংথ তারী আগল দর্শাব্যা ছে. হে জীব!
জ্যাং রুচে ত্যাং লাগী জা.
२५७) जीव वहंतहँ णरय-गइ अभय-पदाणेँ सग्गु ।
बे पह जवला दरिसिया जहिँ रुच्चइ तहिँ लग्गु ।।१२७।।
जीवं घन्तां नरकगतिः अभयप्रदानेन स्वर्गः ।
द्वौ पन्थान समीपौ दर्शितौ यत्र रोचते तत्र लग्न ।।१२७।।
जीव वहंतहं इत्यादि । जीव वहंतहं निश्चयेन मिथ्यात्वविषयकषायपरिणामरूपं वधं
स्वकीयजीवस्य व्यवहारेणेन्द्रियबलायुःप्राणापानविनाशरूपमन्यजीवानां च वधं कुर्वतां णरय-गइ
नरकगतिर्भवति अभय-पदाणें निश्चयेन वीतरागनिर्विकल्पस्वसंवेदनपरिणामरूपमभयप्रदानं
स्वकीयजीवस्य व्यवहारेण प्राणरक्षारूपमभयप्रदानं परजीवानां च कुर्वतां सग्गु स्वस्याभयप्रदानेन
मोक्षो भवत्यन्यजीवानामभयप्रदानेन स्वर्गश्चेति बे पह जवला दरिसिया एवं द्वौ पन्थानां
गाथा – १२७
अन्वयार्थ : — [जीवं घ्नतां ] जीवोंको मारनेवालोंकी [नरकगतिः ] नरकगति होती
है, [अभयप्रदानेन ] अभयदान देनेसे [स्वर्गः ] स्वर्ग होता है, [द्वौ पन्थानौ ] ये दोनों मार्ग
[समीपे ] अपने पास [दर्शितौ ] दिखलाये हैं, [यत्र ] जिसमें [रोचते ] तेरी रुचि हो, [तत्र ]
उसीमें [लग्न ] तू लग जा ।
भावार्थ : — निश्चयकर मिथ्यात्व विषय कषाय परिणामरूप निजघात और
व्यवहारनयकर परजीवोंके इंद्री, बल, आयु, श्वासोच्छ्वासरूप प्राणोंका विनाश, उसरूप
परप्राणघात, सो प्राणघातियोंके नरकगति होती है । हिंसक जीव नरक ही के पात्र हैं ।
निश्चयनयकर वीतरागनिर्विकल्प स्वसंवेदन परिणामरूप जो निजभावोंका अभयदान निज
जीवकी रक्षा और व्यवहारनयकर परप्राणियोंके प्राणोंकी रक्षारूप अभयदान यह स्वदया