Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১২৮ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪২৯
ভাবার্থ:হে মূঢ জীব! শুদ্ধ আত্মা সিবায অন্য পাংচ ইন্দ্রিযনা বিষযরূপ
বধুং জ বিনশ্বর ছে, ভ্রান্তি পামীনে ফোতরাংনে খাংড নহি. এ রীতে বিনশ্বর জাণীনে, ‘শিব’
শব্দথী বাচ্য এবা বিশুদ্ধজ্ঞান-দর্শনস্বভাববালা মুক্ত আত্মানী প্রাপ্তিনো উপায জে নিজ
শুদ্ধ আত্মানা সম্যক্শ্রদ্ধান, সম্যগ্জ্ঞান, অনে সম্যগ্-অনুষ্ঠানরূপ মার্গ ছে তে রাগাদি
রহিত হোবাথী নির্মল ছে. এবা মোক্ষ অনে মোক্ষমার্গমাং তুং প্রীতি কর; পূর্বোক্ত মোক্ষমার্গথী
প্রতিপক্ষভূত ঘর, পরিজনাদিকনে শীঘ্র ছোড. ১২৮.
मूढ सकलमपि कृत्रिमं भ्रान्तः मा तुषं कण्डय
शिवपथे निर्मले कुरु रतिं गृहं परिजनं लघु त्यज ।।१२८।।
मूढा इत्यादि मूढा सयलु वि कारिमउ हे मूढजीव शुद्धात्मानं विहायान्यत्
पञ्चेन्द्रियविषयरूपं समस्तमपि कृत्रिमं विनश्वरं भुल्लउ मं तुस कंडि भ्रान्तो भूत्वा तुषकण्डनं
मा कुरु
एवं विनश्वरं ज्ञात्वा सिव-पहि णिम्मलि शिवशब्दवाच्यविशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावो मुक्त ात्मा
तस्य प्राप्त्युपायः पन्था निजशुद्धात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानरूपः स च रागादिरहितत्वेन निर्मलः
करहि रइ इत्थंभूते मोक्षे मोक्षमार्गे च रतिं प्रीतिं कुरु घरु परियणु लहु छंडि
पूर्वोक्त मोक्षमार्गप्रतिपक्षभूतं गृहं परिजनादिकं शीघ्रं त्यजेति तात्पर्यम्
।।१२८।।
गाथा१२८
अन्वयार्थ :[मूढ ] हे मूढ जीव, [सकलमपि ] शुद्धात्माके सिवाय अन्य सब
विषयादिक [कृत्रिमं ] विनाशवाले हैं, तू [भ्रांतः ] भ्रम (भूल) से [तुषं मा कंडय ] भूसेका
खंडन मत कर
तू [निर्मले ] परमपवित्र [शिवपथे ] मोक्षमार्गमें [रतिं ] प्रीति [कुरु ] कर,
[गृहं परिजनं ] और मोक्षमार्गका उद्यमी होके घर, परिवार आदिको [लघु ] शीघ्र ही [त्यज ]
छोड़
भावार्थ :हे मूढ़, शुद्धात्मस्वरूपके सिवाय अन्य सब पंचेन्द्री विषयरूप पदार्थ
नाशवान् हैं, तू भ्रमसे भूला हुआ असार भूसेके कूटनेकी तरह कार्य न कर, इस सामग्रीको
विनाशीक जानकर शीघ्र ही मोक्ष
मार्गके घातक घर, परिवार आदिकको छोड़कर, मोक्षमार्गका
उद्यमी होके, ज्ञानदर्शनस्वभावको रखनेवाले शुद्धात्माकी प्राप्तिका उपाय जो सम्यग्दर्शन,
सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप मोक्षका मार्ग है, उसमें प्रीति कर
जो मोक्षमार्ग रागादिकसे रहित
होनेसे महा निर्मल है ।।१२८।।