Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-128 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪২৮ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১২৭
তেবী রীতে পোতানা দেহনো ঘাত থতা পণ পোতানে দুঃখ থবুং ন জোঈএ, পণ তেম থতুং নথী.
বলী, নিশ্চযথী জীব (পরভবমাং) জবা ছতাং পণ তেনী সাথে দেহ জতো নথী, এ কারণে
দেহ অনে আত্মা জুদা ছে.
অহীং, অজ্ঞানী কহে কে তো পছী খরেখর ব্যবহারথী হিংসা থঈ অনে পাপবংধ ব্যবহারথী
থযো, পণ নিশ্চযথী নহি.
গুরু কহে ছে কে তমে সাচুং জ কহ্যুং. ব্যবহারথী পাপ তেম জ নারকাদি দুঃখ পণ
ব্যবহারথী ছে. জো (নারকাদিনুং দুঃখ) তমনে ইষ্ট হোয তো তমে হিংসা করো (অনে নারকাদিনুং
দুঃখ তমনে সারুং ন লাগতুং হোয তো তমে হিংসা ন করো.) ১২৭.
হবে, মোক্ষমার্গমাং রতি কর এবী শ্রী গুরুদেব শিক্ষা আপে ছে.
एव ननु तथापि व्यवहारेण हिंसा जाता पापबन्धोऽपि न च निश्चयेन इति सत्यमुक्तं
त्वया, व्यवहारेण पापं तथैव नारकादि दुःखमपि व्यवहारेणेति तदिष्टं भवतां चेत्तर्हि हिंसां
कुरु यूयमिति ।।१२७।।
अथ मोक्षमार्गे रतिं कुर्विति शिक्षां ददाति
२५८) मूढा सयलु वि कारिमउ भुल्लउ मं तुस कंडि
सिव-पहि णिम्मलि करहि रइ घरु परियणु लहु छंडि ।।१२८।।
भी दुःख न होना चाहिये, इसलिये व्यवहारनयकर जीवका और देहका एक त्व दिखता है,
परंतु निश्चयसे एकत्व नहीं है
यदि निश्चयसे एकपना होवे, तो देहके विनाश होनेसे
जीवका विनाश हो जावे, सो जीव अविनाशी है जीव इस देहको छोड़कर परभवको जाता
है, तब देह नहीं जाती है इसलिये जीव और देहमें भेद भी है यद्यपि निश्चयनयकर
भेद है, तो भी व्यवहारनयकर प्राणोंके चले जानेसे जीव दुःखी होता है, सो जीवको दुःखी
करना यही हिंसा है, और हिंसासे पापका बंध होता है
निश्चयनयकर जीवका घात नहीं
होता, यह तूने कहा, वह सत्य है, परंतु व्यवहारनयकर प्राणवियोगरूप हिंसा है ही, और
व्यवहारनयकर ही पाप है, और पापका फ ल नरकादिकके दुःख हैं, वे भी व्यवहारनयकर
ही हैं
यदि तुझे नरकके दुःख अच्छे लगते हैं, तो हिंसा कर, और नरकका भय है, तो
हिंसा मत कर ऐसे व्याख्यानसे अज्ञानी जीवोंका संशय मेटा ।।१२७।।
आगे श्रीगुरु यह शिक्षा देते हैं, कि तू मोक्षमार्गमें प्रीति कर