Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৩২ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৩০
ভাবার্থ:নির্দোষ পরমাত্মানী স্থাপনারূপ প্রতিমানা রক্ষণার্থে বনাবেলুং দেবালয
অথবা মিথ্যাত্বনা পোষক কুদেবালয, তে জ নির্দোষ পরমাত্মানা অনংতজ্ঞানাদি গুণনা স্মরণার্থে
অথবা ধর্ম প্রভাবনা অর্থে প্রতিমাস্থাপনারূপ দেব অথবা প্রতিমারূপ রাগাদিরূপে পরিণত
মিথ্যাদেব, বীতরাগ নির্বিকল্প আত্মতত্ত্বথী মাংডীনে সমস্ত পদার্থনুং প্রতিপাদক শাস্ত্র অনে
মিথ্যা শাস্ত্র, লোকালোকনা প্রকাশক কেবলজ্ঞান আদি গুণোথী সমৃদ্ধ এবা পরমাত্মানো প্রচ্ছাদক
জে মিথ্যাত্ব, রাগাদিরূপে পরিণতিরূপ জে অজ্ঞানরূপী অংধকারনো দর্প জেনা বচনরূপী সূর্যনা
কিরণোথী বিদারিত থযো থকো ক্ষণমাত্রমাং নাশ পামে ছে এবা জিনদীক্ষা দেনার শ্রীগুরু অথবা
তেনাথী বিপরীত মিথ্যাগুরু, সংসারসমুদ্রনা তরবানা উপাযভূত নিজ শুদ্ধ আত্মতত্ত্বনী
ভাবনারূপ নিশ্চযতীর্থ, তেনা স্বরূপমাং রত তপোধননা আবাসভূত তীর্থক্ষেত্রো পণ অথবা
देउलु इत्यादि पदखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते देउलु निर्दोषिपरमात्मस्थापना-
प्रतिमाया रक्षणार्थं देवकुलं मिथ्यात्वदेवकुलं वा, देउ वि तस्यैव परमात्मनोऽनन्तज्ञानादि-
गुणस्मरणार्थं धर्मप्रभावनार्थं वा प्रतिमास्थापनारूपो देवो रागादिपरिणतदेवताप्रतिमारूपो वा,
सत्थ
वीतरागनिर्विकल्पात्मतत्त्वप्रभृतिपदार्थप्रतिपादकं शास्त्रं मिथ्याशास्त्रं वा,
गुरु लोकालोकप्रकाशक-
केवलज्ञानादिगुणसमृद्धस्य परमात्मनः प्रच्छादको मिथ्यात्वरागादिपरिणतिरूपो महाऽज्ञानान्ध-
कारदर्पः तद्व्यापियद्वचनदिनकरकिरणविदारितः सन् क्षणमात्रेण च विलयं गतः स
जिनदीक्षादायकः श्रीगुरुः तद्विपरीतो मिथ्यागुरुर्वा,
तित्थु वि संसारतरणोपायभूतनिजशुद्धात्म-
तत्त्वभावनारूपनिश्चयतीर्थं तत्स्वरूपरतः परमतपोधनानां आवासभूतं तीर्थकदम्बकमपि मिथ्या-
तीर्थसमूहो वा,
वेउ वि निर्दोषिपरमात्मोपदिष्टवेदशब्दवाच्यः सिद्धान्तोऽपि परकल्पितवेदो वा कव्वु
शुद्धजीवपदार्थादीनां गद्यपद्याकारेण वर्णकं काव्यं लोकप्रसिद्धविचित्रकथाकाव्यं वा,
वच्छ
भावार्थ :निर्दोषि परमात्मा श्रीअरहंतदेव उनको प्रतिमाके पधरानेके लिये जो
गृहस्थोंने देवालय [जैनमंदिर ] बनाया है, वह विनाशीक हैं, अनंत ज्ञानादिगुणरूप
श्रीजिनेन्द्रदेवकी प्रतिमा धर्मकी प्रभावनाके अर्थ भव्यजीवोंने देवालयमें स्थापन की है, उसे देव
कहते हैं, वह भी विनश्वर है
यह तो जिनमंदिर और जिनप्रतिमाका निरूपण किया, इसके
सिवाय अन्य देवोंके मंदिर और अन्यदेवकी प्रतिमायें सब ही विनश्वर हैं, वीतराग-निर्विकल्प
जो आत्मतत्त्व उसको आदि ले जीव अजीवादि सकल पदार्थ उनका निरूपण करनेवाला जो
जैनशास्त्र वह भी यद्यपि अनादि प्रवृत्तिकी अपेक्षा नित्य है, तो भी वक्ता-श्रोता पुस्तकादिककी
अपेक्षा विनश्वर ही है, और जैन सिवाय जो सांख्य पातंजल आदि परशास्त्र हैं, वे भी विनाशीक
हैं
जिनदीक्षाके देनेवाले लोकालोकके प्रकाशक केवलज्ञानादि गुणोंकर पूर्ण परमात्माके
रोकनेवाला जो मिथ्यात्व रागादि परिणत महा अज्ञानरूप अंधकार उसके दूर करनेके लिए सूर्यके