Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-144 (Adhikar 2) Gruhavas Athava Mamatvama Dosh.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১৪৪ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪৫৫
হবে, শুদ্ধ আত্মানা সংবেদননুং সাধক জে তপশ্চরণ তেনাথী প্রতিপক্ষভূত গৃহবাসনে দোষ
দে ছে (গৃহবাসনো দোষ বতাবে ছে) :
ভাবার্থ:অহীং ‘গৃহ’ শব্দথী মুখ্যপণে স্ত্রী লেবী. বলী, কহ্যুং পণ ছে কে‘न गृहं
गृहमित्याहुर्गृहिणी गृहमुच्यते ’’ (অর্থ:গৃহনে গৃহ কহেতা নথী, গৃহিণীনে গৃহ কহেবায ছে. হে
জীব! তুং ঘরবাসনেস্ত্রীবাসনেআত্মানা হিতরূপ ন জাণ, আ গৃহবাস সমস্ত পাপোনুং
নিবাসস্থান ছে. অজ্ঞানী জীবোনে বাংধবা মাটে কৃতাংত নামনা কর্মে শুদ্ধাত্মতত্ত্বনী ভাবনাথী
अथ शुद्धात्मसंवित्तिसाधकतपश्चरणप्रतिपक्षभूतं गृहवासं दूषयति
२७५) घर-वासउ मा जाणि जिय दुक्किय-वासउ एहु
पासु कयंतेँ मंडियउ अविचलु णिस्संदेहु ।।१४४।।
गृहवासं मा जानीहि जीव दुष्कृतवास एषः
पाशः कृतान्तेन मण्डितः अविचलः निस्सन्देहम् ।।१४४।।
घरवासउ इत्यादि घर-वासउ गृहवासम् अत्र गृहशब्देन वासमुख्यभूता स्त्री ग्राह्या
तथा चोक्त म्‘‘न गृहं गृहमित्याहुर्गृहिणी गृहमुच्यते ।।’’ मा जाणि जिय हे जीव
त्वमात्महितं मा जानीहि कथंभूतो गृहवासः दुक्किय-वासउ एहु समस्तदुष्कृतानां पापानां
वासः स्थानमेषः, पासु कयंतें मंडियउ अज्ञानिजीवबन्धनार्थं पाशो मण्डितः केन
सेवन इस जीवको नहीं हुआ, और सम्यक्त्व नहीं उत्पन्न हुआ सम्यक्त्व होवे तो परमात्माका
भी परिचय होवे ।।१४३।।
आगे शुद्धात्मज्ञानका साधक जो तपश्चरण उसके शत्रुरूप गृहवासको दोष देते हैं
गाथा१४४
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव, तू इसको [गृहवासं ] घर वास [मा जानीहि ] मत
जान, [एषः ] यह [दृष्कृतवासः ] पापका निवासस्थान है, [कृतांतेन ] यमराजने (कालने)
अज्ञानी जीवोंके बाँधनेके लिये यह [पाशःमंडितः ] अनेक फ ाँसोंसे मंडित [अविचलः ] बहुत
मजबूत बंदीखाना बनाया है, इसमें [निस्संदेहम् ] सन्देह नहीं है
भावार्थ :यहाँ घर शब्दसे मुख्यरूप स्त्री जानना, स्त्री ही घरका मूल है, स्त्री
बिना गृहवास नहीं कहलाता ऐसा ही दूसरे शास्त्रोंमें भी कहा है, कि घरको घर मत
जानो, स्त्री ही घर है, जिन पुरुषोंने स्त्रीका त्याग किया, उन्होंने घरका त्याग किया